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________________ Laskara Jain Temple:Granth: Bhandar 59 Ends Date of the Original V.S. 1699 Date of the Copy:. -.S. 1826 - Subject : -KATHA - Begins. . ! -अथ श्रोणिक चौपई लिखते आदिनाथ वंदी जगदीस । जाहि चरित थे होई जगीस । दूजा बंदी गुर निरगंथ । भूला भव्य दिखावरण पंथ ॥ १ ॥ तीजा साधू सवै का पाई। चौथा सरस्वती करो सहाय । जेही सैया थे सब बुधि होय । करौ चौपई मन सुधि जोई ॥२॥ माता हमने करो सहाई। अख्यर हीण सवारो आई । श्रेणिक चरित बात में लही। जैसी जारणी चौपई कही ॥ ३ ॥ राजा सही चेलना जारिण । धर्म जैनि सेवे मनि आणि । राजा धर्म चलावे बोध । जैन धर्म को काट खोध ॥ ४॥ -भेद भलो जाणो इकसार । जे सुरिणसी ते उतर पार । हीन पद अक्षर जो होय । जको सवारो गुणियर लोय ।। २८६ ।। मैं म्हारी बुद्ध सारू कही। गुरिणयर लोग सवारो सही । जे ता तणो कहै निरताय । सूणता सगला पातिग जाई॥ २६० ।। लिखिवा चाल्यो सुख नित लहो, जै साधा का गुण यो कही। या मै भोलो कोइ नहीं, इगै बैद चौपई कही ।। २६१ ।। वास भलो मालपुरो जाणि । टोंक मही सा कियो बखाण । जठे बसै महाजन लोग । पान फूल का कीजै जोग ॥ २६२ ॥ पौरिण छतीसौं लीला करै । दूख थे पेट न कोइ भरै । राहस्यंध जी राजा बखारिणः । चौर वाहन राक्ष आणि ।। २६३ ।। जीव दया को अधिक सुभाव । सबै भलाई साधै डाव । पतिसाहा बंदि दीन्ही छोडि । चुरी कही भवि सुरिण वहोडि ।। २९४ ।। धनि हिदंवारणों राज बखारिण । जह मैं सीसोधा सो जागि । जीव दया को वीचारि । रैति तणों राखै आधार ।। २६५ ॥ कीरति कही कहा लगि जाणि । जीव दया सह पालै प्राणि । इह विधि सगला करै जगीस । राजा जीज्यौ सौ अरू बीस ।। २६६ ।। - एता वरस भै भोलो नहीं । वेटा पोता फल ज्यो सही । दुखिया का दुख टाले प्राय । परमेश्वर जी कर सहाय ।। २६७ ।। .... इ पूण्य तणो कोइ नही पार । वैदि खलास करै ते सार । बाकी चुरी कहै नर कोई। जन्म प्रापणी चालै खोई ।। २६८
SR No.010254
Book TitleJaipur aur Nagpur ke Jain Granth Bhandar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherUniversity of Rajasthan
Publication Year
Total Pages167
LanguageHindi
ClassificationCatalogue
File Size7 MB
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