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Bisapanthi Dig. Jain Temple Granth Bhandar Nagaur
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No. 3.
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borders are unruled; the manuscript written in Hindi language; it is a complete work in good condition.
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- Posa Badi 9, V. S. 1899
-ADHYATMA
- ॐ नमः सिद्ध । अथ वारहखड़ी लिख्यते ।
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दोहा - श्री जिनवर वृष कू नमू नमू जिनोत्तम वारिण । रच, स्व परहित जाणि ॥ १ ॥
बारखड़ी उपदेश मय
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काका कांई ₹ कर तो फिर तु भालं जंजाल । सीख न मानी र गुरां की येक ग्यानीजीव । विषयभोग में रहे लिप घोर है तू बांध कर्म । धर्म न जाने ₹ क्या होय सम्यक्ग्यानीजीव ॥ १ ॥
BHAGAWATI SUTRA
Ref. No. 222 / A
-101" x 41"
—-45 Folios, 11 lines per page, 33 letters per line. -Country paper, thin and greyish; Devanagari characters in bold, legible and elegant hand-writing; borders ruled in three lines in black ink; the work is in good condition; it is a complete work, written in Prakrit Language.
-Chetra Sudi 15, Saturday, V.S. 1609 ACHÁRA SHASTRA
———तरण कालेरण । तेंरणं समएणं । सावछीनयरी होछा ॥ ---एवं जहांउवातिय जावं सव्वद्ध रकाण अंत काहिति । सेवंतंतेसे वर्तते त्रि जाव विहरति ते य निम्मंगो संम्मतो ॥ ७ ॥
Scribal remarks:
संवत् १६०९ वर्षे चैत्र सुदि पूर्णिमास्यां तिथ शनिवासरे श्री लाभपुर मध्ये लिखितं हरिदासेन ॥ देवा पठनार्थं । योस्तु ।
यादर्श पुस्तकं द्रष्टं तादृशं लिखितं मया ।
यदि शुद्धमशुद्ध वा
मम दोषो न
दीयते ॥