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Jain Granth Bhandars In Jaipuri & Nagaur
कलाप कलार लेव । दिशदिशमधीर विलास मध । कुरु कुरु करुणां जिन परमपद्य ।। २।। धरणांचित पाद प्रयप्रजात. गुण सागर हत जन विघ्न बात । दिश० ॥३॥ विसुत सुतदंदमितरि पक्ष । नुतसर दिति स्तुतनृप नेकर पक्ष । ... दिश० ॥४॥ मद मदन भूज़ग गरुडोग्रदेव । फरिणपति पत्नीकृत सततःसेवा ।। दिश० ॥५॥ हरि हर रवि कवि गुरु विधि सुताभिरिह हरितमणि कच... यस्मिकाभ । दिशदिशमधीर विलास मद्य । कुरू कुरू करूणां जिन परम पद्य ॥६।। घता ।। इति वरजयमाला गुण गण शाला केशउसेण भरिपापद्ये । . सोलह गणिस्तरं बहु गुणसंपद चक्की शक्ष्ण रविविरये ॥७॥ महाघ श्रियं ... यशः कांतिमरोगताशंपरोपगारं श्रु तमे विधं । दिशतुकामाधिक रुपमत्रजिनेश्वरा केशवसेन पूज्याः ॥८॥ इति प्राशिवादः । श्री रत्नभूषण गुरोश्चरणविदं नत्वा मुदा परमत्ते भगजारिणा च भक्तया कृता मुनिगग्गा-...... च्चितर्मगंलस्य । भ्रात्रा मुने परम केशवसेवकेक ६॥ इत्यादित्यव्रत पार्श्वनाथपूजानाम्नं पूर्ण समाप्ता ।। शुभं भवतु ।' संवत् १७८३ वर्षे सावरण शुक्लपक्षे तिथवुः नमी मंगलवासरे 'शुभं भवतु ॥ .
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No.3
Ref. No: 3 GYANA SURYODAYA NATAKA ... Author -VADI CHANDRA SURI Translator --PARASVDAS NIGOTIYA
-12"x71" Extent --14 Folios; 15 lines per page, 40 to 44 letters per line. Description - Country paper, very thin and greyish; Devanagari characters
in clear and fair hand-writing; borders ruled in two.to four lines in red ink; edges ruled in two lines in the red. ink; the manuscript contains only the translation.in local..
: Language; condition of the manuscript is • very .poor; : ' '.. it is a complete work, written in prose and verse.. Date of the Copy.... -Posa Sudi 11, v. S. 1917 Subject .. --NATAKA . ...
.:":"...... . . Begins -ॐ नमः सिद्ध भ्यः सद्गुरवेनमः श्री सरस्वत्यैनमः । अथ ज्ञानसूर्योदय नाटक ... ... .. नाम ग्रन्थ की देशभाषामय वचनिका करिये हैं ।। प्रथम ही मंगल रूप पंच
परमेष्ठी को वचक जो ॐकार पद तोकों नमस्कार करि देव शास्त्र गुरु • नमस्कार रूप. मंगलाचरण, करिये है ।।... :
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