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कर्पूरप्रकर, अर्थ तथा कथा सहित. ४१ ब्रह्माने अपूज्य कस्या. ते अद्यापि जगत्मां को ब्रह्माजीने को पूजतो नथी अने केतकी जूती सादी जरी तेथी शिवजीयें तेनो त्याग कस्यो जेमाटे आजपर्यंत केतकीनां फूल महादेव उपर चडतां नथी अने विष्णु सत्य बो ल्या तो तेने महादेवे जगत्मां पूज्य कस्या, ते अद्यापि पूजाय डे माटे गमे तेवू सुःख पडे तो पण सर्वथा असत्य नाषण करवुज नही असत्य नाषण करनारो पुरुष जे होय ते ब्रह्मा बने केतकीनी पेठे थाय ले.
हवे वसुराजानी कथा कहे जे. शुक्तिमतिपुरीने विषे वसुराजा राज्य करे बे. त्यां दीरकदंब नपाध्याय रहे . ते पोताना पुत्रने तथा राजाना पुत्र वसुराजाने तथा नारदने ए त्रणने नणावे . एक दिवस उपलीनूमियें उपाध्याय रात्रिने विषे ध्यान करता हताः तेवामां आकाशमार्गथकी वे मु निनुं एवं वाक्य सांजल्युं जे आचार्यनी पासें त्रण जणशास्त्र नणे में तेमां वे जण नरकगामी थाशे अने एक जण स्वर्गे जशे. पनी उपाध्या ये त्रणे जणने कुर्कुट वधने माटे मोकल्या तेमां नारद विना वे जणे तो कुर्कुटवध कस्यो माटे ते बेदु जण नरकगामी थाशे अने नारदें वध न कस्यो माटे ते स्वर्गगामी थाशे. अनुक्रमें उपाध्याय मरण पाम्या, तदनंतर पर्वतें तो " अजैर्यष्टव्यं” ए वाक्यनो आम अर्थ कस्यो जे पशुयें करी य ज्ञ करवो, तेने नारदें कह्यु के हे नाइ! उपाध्यायें तो अज शब्दनो अर्थ त्रण वर्षनी जुनी व्रीहि कहेली . एम बेदु जनो विवाद थतां थतां एक बीजायें एवं पण लीधुं के जेनुं बोलवु खोटुं ठरे, तेनी जिह्वानुं छेदन करवू. ते बेदुजणे कबुल कयु. अनें वसुराजा जे उपाध्यायनो त्रीजो शिष्य हतो तेणे पर्वतनी माताना नपरोधेकरी खोटी सादी पूरी ने कह्यु के अज ए टले बकरो जाणवो एम उपाध्यायें कयुं हतुं आवीरीतें खोटुं बोव्यातांज शासनदेवीये तेने सिंहासन नपरथी गंधो नाखीने चपेटीयें करी मरण प माड्यो ते मरीने नरकमां गयो, माटे जे कोइ असत्य नाषण करशे तथा असत्य सादी नरशे ते वसुराजानी पेठे दुःखी थाशे. ए वैराग्यधार पूरुं थयुं.
वैराग्यशस्त्रहतमोहतमोऽमलांत, दृष्ट्या पटिष्टपरि दृष्ठहिताहितार्थः॥चौरोपि शुध्यति शमेन दृढ प्रहारी, वापैति वा दवजवोजलदेन किं न॥३५॥