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- जैनकथा रत्नकोप नाग पांचमो. के हुँ नेमिनाथने पूबीने थापीश त्यारकेडें तेणे नेमिनाथ जगवान्ने जश्ने पूज्युं के महाराज प्रथम कोणे बापने वांद्या ? नगवानें कह्यु के इव्य वं दन पूगेडो के नाववंदन पूबोडो ? त्यारे श्रीकृष्णे कडं के जेमां लान होय ते पू बु त्यारे श्रीनेमिनाथे कह्यु के नाववंदन उत्तम ने माटे नावथकी प्रथम मुने सांबकुमरें वंदन कयुं . ए वात सांजली श्रीकृष्णे सांबने प टाश्व आप्यो, कह्यु बे के श्लोक ॥ नाव एव मनुष्याणां, कारणं सुखःख योः॥ दृष्ट्वा नेमिं च कृष्णेन, कृतं यत्स्वपुत्रयोः ॥१॥ इति दृष्टांत ॥५०॥ हवे लोकोना बोलवानुं प्रमाण नथी ते ऊपर पचासमो दृष्टांत कहे .
॥ अश्वस्थं जनकं सुतं विचरतं प्रोचु विशोऽधोव्रजा, श्वारूढं कुरु पुत्र कृतमतो दृष्ट्वाच पुत्रं तथा ॥आरूढौपथि गबतौ जडधियो ताक्ष्य हिकिंमार्य तां, पञ्यांकाय मितस्तदास्यनयतो मध्ये हि किं वास्यतां ॥५१॥ अर्थःकोई एक पिता पुत्र बेहुजण अश्व लश्ने जाय , रस्तामां बाप घोडा ऊपर बे गे, अने पुत्र आगल चाले डे त्यारे सामा मलनार लोकोयें कयुं के आ पोते घरडो थश्ने घोडे चड्यो जाय डे अने बालक चालतो जाय बे त्या रे पितायें बालकने कयुं के तुं घोडे बेस. पनी ते बालकने घोडे बेठेलो जोइने सामा मलनार लोको कहेवा लाग्या के पुत्र घोडे बेठो ले ने घरडो बाप चालतो जाय डे ते सांजली बेदु जण घोडा उपर बेठा त्यारें लोको यें कह्यु के बा बाप दीकरो बे जण घोडा उपर चढी बेठा ले ने बिचारा घोडाने मारे जे. ते सांगली घोडाथी नीचें कतरी बेदु जणे पगें चालवा मांमयुं त्यारे लोकोयें कर्वा के तमे मोहोटा मूर्खा देखाबो. जे माटे शा थे घोडो थयो बे अने पोते पाला कां चाव्यां जाबो घोडो फोकट चा व्यो आवे ने ते झुं तमने उध देशे ? ा उपरथी जणाय बे के लोक ते बोक ने जेम गमे तेम बोले ए लोकोनो स्वनावज ने जगतनो बोलवानो नियम नथी कयुं वे के श्लोक ॥ सर्वथा स्वहितमाचरणीयं, किं करोति हि नरो बदुजल्पः॥ विद्यते च नहि कश्चिउपायः, सर्वलोक परितोषकरोयः ॥१॥ हवे असत्य बोलवाथी नरकें जवाय ते ऊपर एकावनमो दृष्टांत कहे जे.
॥ तान् संपाग्य परीक्षणं गणिवरः कृत्वा त्रयाणां मृतो, वादं पर्वतना रदौ च वदतो राज्ञः सनायां गतौ ॥ ज्ञात्वा सत्यदृढंवसुं नरपति मात्राय दात्वक्ति तौ, मिष्टं वाक्यमतो गतःस नरके मृत्या नृपः सप्तमे ॥५॥ अर्थः