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षट्स्थान स्वरूपनी चोपाई. ए३ अहिदंम नाशे, तेमज आत्मझानें यात्मज्ञानजनित प्रपंच नाशे, गुक्तिज्ञा ननाश्य लाघवथी शक्ति रजत ॥पण ते ज्ञान नहीं. तेम यात्मज्ञानना नाशे पण प्रपंच जाणवो ॥ ३ ॥
॥अधिष्ठान जे नवन्रमत', तेहज ब्रह्म हुँ साचुं गणुं॥ तेहने नहीं करमनो लेप,होय तो न टले करतां खेप ॥ ३५॥ अर्थः-प्रपंचत्रांति ते हनुं अनुष्ठान जे ब्रह्म तेहज ढुं साचुं गणुं बु. जेम रजतनमाधिष्ठान शुक्ति अहिनमाधिष्ठान रकुप्रतें ब्रह्मप्रपंचने सादृश्य नथी तो चम केम होय ? एवी शंका न करवी जेमाटे कोइ तमंसादृश्य नीरपण होय . ननोनील मितिवत्. ते ब्रह्मपरमार्थसत्यनें कर्मनो लेप नथी. जो चेतनने कर्मनो ले प होय तो घणुये नद्यम करतां टले नहीं ॥ ३ ॥
॥जे अनादि अज्ञान संयोग, तेहनो कहियें न होय वियोग'॥ नाव अ नादि अनंतज दिछ, चेतन परें विपरीत थनिह॥ ४० ॥ अर्थः-जेमा टे (अझान के०) ज्ञानावरणकर्म तेहनो अनादि संयोग जीवने मानो तो कहियें क्यारें वियोग नथी तथा नाव अनादि होय ते अनंतज होय जेम चेतननाव विपरीत अनिष्ट ले. अनादिसांत नाव प्रमाणसिहज न थी. तेमाटे कर्मसंयोग जीवने अनादि नथी, सदा कर्ममुक्तज ब्रह्म . नित्य मुक्तने अविद्यायेंज बंध जणाय बे.ते पागली गाथायें दृष्टांतें दृढावे ॥३०॥
॥ काच घरें जेम नूंके श्वान, पडे सिंह जलबिंब निदान ॥ जिम कोलि क जालें गुंथाय, अज्ञाने निजबंध न थाय ॥४१॥ अर्थः-जेम काचना घरमा प्रतिबिंबने अपर बीजो श्वान न जाणीने श्वान नसे जे, जेम सिंह जलमांहे पोतानुं प्रतिबिंब देखी तेना निमित्तें अपरसिंह जाणी कोधे करी तेमांहे पडे जे, जेम तंतुवाय पोतें जाल करे तेमांहे पोतेंज गुंथाय डे, तेम ब्रह्मज्ञानविना नेदप्रतिनासें जूठें जूटुंज बंधन थाय ॥४१॥
॥इम अज्ञाने बांधी मही, चेतन करता तेहनो नहीं ॥ गल चामीकरने दृष्टांत, धरमप्रवृत्ति जिहां लगे भ्रांत ॥ ४२ ॥ अर्थः-एम अज्ञाने (मही के०) पृथ्वी ते बंधाणी, ते बंधनो कर्ता चेतन नथी. जो परमार्थथी बंध नथी, तो बंधवियोगने अर्थ योगी केम प्रवर्ने ? ते आशंकायें कहे . (गलचामीकर के० ) कंठगत हेममाला तेहने दृष्टांतें ब्रांति ले. तिहांसुधी धर्मनेविषे प्रवृत्ति ते जेम बतीज कंठसुवर्णमाला गले जाणी, कोक घणा स्था