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श्रीनुवननानु केवलीनो रास. ३३३ दर्शनने मोह रे ॥ सपरिवार रे तिहां आवी वस्या रे, तव वाध, तेहनी सोह रे ॥ध ॥ १० ॥ दिल दोडावी रे बदु देशावरें रे, विध विधना व्य वसाय रे ॥ मोटा मोटा रे तिणें तव मांमिया रे, जलवट थलवटें धाय रे ॥ ध० ॥ ११ ॥ क्लेश साथै रे वाधी संपदा रे, केश रत्ननी कोडी रे ॥ तृष्णा पूरे रे तिणे मेली तदा रे, अंगथी बालस बोडी रे ॥ध॥ १२ ॥ उदयर तन इणि परें उचरे रे, ए बपनमी ढाल रे॥ परखी जोतारे मोहना सैन्य मां रे, लोन जुमो चंमाल रे ॥ ध० ॥ १३ ॥
॥दोहा॥ ॥ तो पण तृष्णा नवि मिटे, अर्थ उपायो जेह ॥ रखोपुं करतां तेहy, निइ नावे नयणेह ॥ १॥ रात दिवस पूरण रहे, ले जूए लखवार ॥ बिलाडीना बच्चा परें, फेरवे अर्थ अपार ॥ २ ॥ बदाम काजें त्यजे बापने, मातने मूके दूर ॥ याचक लागे जहेरसो, जोजन न करे नूर ॥ ३॥ तो लीमापीने गणी, जो आपे तेह ॥ घण कष्टें घर खरच पण, तिल पापड थयो तेह ॥ ४ ॥ खाए खोळं धान ते, नवु न खाए रेष ॥ हाथो हाथें आपतां, प्रतीत न पामे एष ॥ ५ ॥ सर्वगाथा ॥ १७४१ ॥
॥ढाल सतावनमी॥ ॥ मोरा आदि जिन देव देखी तुजने आनंद नयो ॥ ए देशी ॥ मुलाइ नाइने तिणे, एकदा निज आथ ॥ कोडि गमे सोंपी किमें, लोनने परमा थ ॥ जो जो लोजनां काम ॥ लोन नंमो एह कंमो दरिन लह्यो ॥ १ ॥ नाणानुं ते लेखू करतां, बहु कीया तव पंच॥ पूरा न पडे तेहने काजें,थ ई खिंचा खिंच ॥ जो० ॥ २ ॥ पग बंधीने लेखू करतां, वही गया दिन सात ॥ मुलाई ते मृत्यु पाम्यो, विसूचिका संघात ॥ जो ॥ ३ ॥ तव 3 ष्टमा शिरदार तेहने, लोक कहे एवंम ॥ बल्या हाथनो बिरुद एहवं, वली कहे करचं ॥ जो ॥ ४ ॥ प्रसिह एहवी परवरी रे, बाप्युं तेहy कोय ॥ हाथमां न जाले हाहा, लोनें हुं होय ॥ जो० ॥ नगरमांहे एकदा तिहां, मुंघो थयो काठ ॥ खेरनी महा खोट पडी, नहीं आव्यानो घाट ॥ जो० ॥ ६ ॥ सागरें तव प्रेखो तेहने, कां मेहलियें लान ॥ हिमत दिए राखतां, उमलिमांहे यान ॥ जो० ॥ ७ ॥ तनुजने पण ते न धीरे, का ई नापे काम ॥ रखे जाणे ए माहरो, उष्ट वेरे दाम ॥ जो० ॥ ॥ पांच
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