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१७ जैनकथा रत्नकोष नाग पांचमो. रत सजि तसु संग हो लाल ॥ अकल गति अबलातणी, ढांकी राखे ढंग हो लाल ॥ मा० ॥ ११ ॥ फल फूल मेवादिक नवा, आपे धरी उमेद हो लाल ॥ जरतार नक्तिनरें करे, नित नवलां निवेद हो लाल ॥ मा० ॥ ॥१२॥ तव ते जार वदे अहो, पूर्वज तुज जली पेर हो लाल ॥ संतो ष्या बे में सही, मनमांहे धरसे महेर हो लाल ॥ मा० ॥ १३ ॥ जे जे क रे सेवना, ते ते पहोचे २ तास हो लाल ॥ एह, जाणीने तेहने, अंगें थयो उन्नास हो लाल ॥ मा० ॥ १४ ॥ नक्ति अपूर्व उन्नसी, अष्टांग प्र एमी विशेष हो लाल कांई जे खातां गरे,शिर चढावे ते शेष हो लाल ॥मा०॥ १५॥ तेतालीशमी ढालमां, जो जो महिलानां काम हो लाल ॥ उदय वदे निज नाथने, गोरीये कीधो गुलाम हो लाल ॥ मा० ॥ १६ ॥
॥ दोहा ॥ ॥ जो कोई कहे तेहने, उःशीला तुज नार ॥ तव ते कहे हुँ जाणुं में बु, ए सघलो आचार ॥ निर्मल मुफ नारी अडे, गोप्य न राखे गूज ॥ सं बंध पहिलो ए सवें, मांमि कह्यो ने मुफ॥॥श्म नत्तर नापे किश्यो, कर्वा न माने कांहि ॥ मगन थयो महिला रसें, निर्गम समके नांहि ॥३॥ तव एक दिन कोई उर्जनें, देखायो ते जार ॥ तेहने घरमां पेसतो, सम्य क् परें सुविचार ॥ पोताने घरें पेसतो, पेखी तेह पुरूष ॥ घर यावी घरणी प्रतें, रंगें जणावे रूप ॥ ५॥ हे कांते कहो ए किसी, लव करे जे लोक ॥ तव सा कहे थइ तरतरी, लोक तणा मुख बोक ॥६॥ सर्वगाथा ॥ ७०३॥
॥ ढाल चुमालीशमी॥ ॥ सीता हो पीन सीतारा प्रनात ॥ ए देशी ॥ जाण्यु हो पिन जाण्यु तुमाऊं में बाज, सघळु हो पिन सघj जाण पणुं सही ॥ परघर हो पि न परघरनंजा लोक, तेहनी हो पिठ तेहनी वातें लागा वही ॥१॥ घरनी हो पिन घरनी त्रेवड लहे जेह, परनी हो पिठ परनी न माने वा रता ॥ दोषी हो पिठ दोषी जन विण दोष, पापी हो पिठ पापी रहे प चारता ॥२॥ में तो हो पिठ में तो आगलथी एह, तुमने हो पिठ तुमने गुह्य कह्यु हतुं ॥ तुमें तो हो पिठ तुमें तो दिलनुं कूड, जलें हो पिठ जलें याज कमु उतुं ॥ ३ ॥ फलशे हो पिन फलशे मनोरथ माल, जो जो हो पिन जो जो आज थकी सदु, धरशे हो पिन धरशे पितृपण हेत ॥ लग