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श्रीनुवननानु केवलीनो रास. १७ लें कहे किश्युं रे, अब्ता उपाइ दोष ॥ पण हूं० ॥ १३ ॥ तुमे तो महा रां रे लक्षण सवे लहो रे, लोक लवे जो लाख ॥ तो पण केहy रे कह्यु मानो नहीं रे, स्नेह पूरे जे साख ॥ पण हूं० ॥ १४ ॥ ढाल ए बोली रे वे तालीशमी रे, उदय वदे श्म धार ॥ कामिनी परें रे कोई आप गोपवा रे, समरूँ नहिं संसार ॥ पण हूं ॥ १५ ॥
॥दोहा॥ ॥ तव ते कहे प्रिया तुने, न घटे कहेवु एम ॥ विकल्प को ताहरेविषे, कहो हुँ चिंत केम ॥ १ ॥ ढुं नहिं बीजा सारिखो, लोकने कहेणे लाग ॥ मेनूं जे मूरखपणे, आपणा घरमां बाग ॥ २॥ ते माटे जाई तुमे, तस सनमानो तेम ॥ पूर्वज प्रीतें थापला, जयकारी होंय जेम ॥ ३ ॥
॥ढाल त्रेतालीशमी॥ ॥ रुकमणि राणि मोहोलमां ॥ए देशी-॥ तव सा जश्ने तेहसुं, खेले वि ध विध खेल हो लाल ॥ स्वेडाएं तनु सोंपती, रसनी चलावे रेल हो लाल ॥१॥ माया जो जो महिलातणी, जे किरों परखी न जाय हो लाल ॥ बयल पुरुषनें तरे, बाखर केहनी न थाय हो लाल ॥ मा० ॥ २॥ न रतारने नाखे पडे, अवहेली मुने एण हो लाल ॥ नक्तं तुमे नजो नहीं, पूर्वज रूठा तेण हो लाल ॥ मा० ॥३॥ विनयतणे वचनें करी, नाव दे खाडी नूरि हो लाल ॥ तिम संतोष्यो तेहने, में उलट आणी कर होला ल ॥ मा० ॥ ४ ॥ पूर्वजने ए प्रीवी, प्रसन्न करशे विशेष हो लाल ॥ स घला पितृनो सही, यति मानीतो एष हो लाल ॥ मा० ॥ ५ ॥ बीजुं प ए बद्ध काम बे, पितृसंबंधी स्वामि हो लाल ॥ दिन केताएक ते वती, ए रहेशे आ गाम हो लाल ॥ मा० ॥ ६ ॥ ते माटे में तस्यो, जिहां ल में रहो यांहि हो लाल ॥ जोजन तिहां लगे अम घरें, करजो तुमे खां हि हो लाल ॥ मा० ॥ ७ ॥ तव ते कहे तें रूई कस्युं, आमंत्र्यो जे एह हो लाल ॥ नलि परें मुंजावजो, अति आदरें सस्नेह हो लाल ॥ मा०॥ ॥॥ पितृ जन को प्रादुणा, थावे आपणे नुवन्न हो लाल ॥ चाही कीजें चाकरी, पोते होवे जो पुन्य दो लाल ॥ मा० ॥ ५ ॥ शालि दालि घृत शालणां, लापति घृत पूर आदि हो लाल ॥ उपपतिने ते अंगना, सु विधे जमाडे स्वादि हो लाल ॥ मा० ॥ १० ॥ अनेक विधने वासने, सु