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श्रीनुवननानु केवलीनो रास. ११ ॥ कु० ॥ ५ ॥ पापी ते सदु बलें पडे, तव समरी पूरव वीर ॥ कु०॥ को पें चड्या काली गले, लई जाए निज घेर ॥ कु० ॥ ६ ॥ विडंबी विविध परें वली, निर्दय तेह नितोर ॥ कु०॥ ते माटे तूं एहनु, जतन करजे जो र ॥ कु० ॥ ७ ॥ क्यारे जो ते पामशे, थोडो पण अवकाश ॥ कु०॥ तो बाधो गढ नेलसे, रखे करो विशवास ॥ कु० ॥ ॥ सम्यक दर्शनने स दा, आराधजे कचित्त ॥ कु०॥ पतिव्रता नारी परें, मेली मननी ब्रांति ॥ कु० ॥ ए.॥ चारित्र धर्म राजान ते, योग्य जाणि गुणगेह ॥ कु० ॥ देखा डशे दिन केटले, नक्तवत्सल प्रनु तेह ॥ कु० ॥ १० तनुजा बे ने तेहनी, अंगथी पण नहि अलगी। कु० ॥ परम वहनन प्रजित जगें, शीला रही जे विलगी ॥ कु० ॥ ११ ॥ साम्राज्य संपद दायिनी, प्रवर लदणोपेत ॥ कु०॥ सुख खाणी सुनगी घj, सकल सोहगर्नु खेत ॥ कु० ॥१२॥स वस्व गुणनी उरडी, देश विरति एक दिव्य ॥ कु० ॥ सर्व विरति बीजी स ही, नामें उत्तमतरें सेव्य ॥ कु० ॥ १३ ॥ एकमने आराधतां, चक्री चा रित्र धर्म ॥ कु० ॥ ते पुत्री तुने परणावशे, शाश्वत जे ये शर्म ॥ कु० ॥ ॥१३॥ तरवारनी धारा जिसुं, आराधन तास ॥ कु० ॥ सुजाराने सु खनुं मूल डे, अजाणने के कुःखरास ।। कुछ ॥ १५ ॥ त्रिविधं तेहने सेव तो, पामीश तूं सुख पूर ॥ कु० ॥ क्रमे क्रमे चडतो पगथिए, रहे तो तास हजूर ॥ कु०॥ १६ ॥ परम प्रसूता पद प, मुक्ति पुरीनुं राज्य ॥ कु०॥ पामीश परमेश्वरपणुं, जिहां वेरी न थाणे वाज.॥ कु० ॥ १७ ॥ अडत्री शमी ए ढालमां, नदय रतन कहे एम ॥ कु०॥ सुखिया तो तेहज सही, जेहने संयमसुं प्रेम ॥ कु० ॥ १७ ॥
॥दोहा॥ ॥ सम्यक् ए सर्व सांगली, ते विश्वसेन कुमार ॥ सम्यक् दर्शन मंत्रि नो, सेवक थई तिणिवार ॥ १ ॥ नेहेंगुं गुरुने नमी, पोतो पोताने गेह ॥ कुमर ते सपरिकरें, लाहो अपूरव लेह ॥ २ ॥ सुगुरु वचन संनारतो, स म्यक् दर्शन सेव ॥ सम्यक् ते सूधा करे, नवे नेहें नितमेव ॥ ३ ॥ कर्म राजा तव चिंतवे, अहो प्रतिज्ञा प्राहि ॥ पूरी में पाडी हवे, चिंता न र ही कांहि ॥ ४ ॥ बांधव मुफ बदु कोपशे, जो आगें तो पण सत्य ॥य र्ध पुदगल उपहरी, एहने नहिं नव स्थित्य ॥ ५ ॥ प्रौढ सहाय प्रनाव