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जैनकथा रंनकोष नाग पांचमो.
बहु दिननो लजायो रे ॥ अंतःकरण नामें तव मोहोलें, राजकुमर ते यो के दर्शन देखीने ॥ सम्यक् दर्शननुं सार, मोह्यो मुख पेखिने ॥ १ ॥ तिहां उपराम समकित रूपधारी, सम्यक् दर्शन मंत्रीने रे ॥ देखतां दि लवलस्युं तेहनुं, मृग जिम सुणि तंत्रीके ॥ द० ॥ २ ॥ पुष्करावर्त नामें घनयोगें, जिम तरु दवनो दाधोरे ॥ नवपल्लव थाए तिम तेणें, हर्ष पू
लोके ॥ ० ॥ ३ ॥ जिम पंथी सर देखी रीके, ग्रीष्म ऋतु मरुदेशें रे ॥ दुर्जन वचनें दाधो जिम साधु, सुवचनें सीच्यों विशेष के ॥ द० ॥ ॥ ४ ॥ जनम दरि । जिम धन धारा, देखीने दिल हीसे रे || ही में बाव्यां जिम अंबुज विकसे, वारु वसंत जगीसें के ॥ द० ॥ ५ ॥ जिम विरही व नने योगें, मेघागमे जिम मोरा रे ॥ मालती नहीं जिम मधुकर माले, चंदने देखि चकोरा के || द० ॥ ६ ॥ मोहादिक वेरिएं मलिने, काल अ नादि अनंत रे || डुःख दावानल दऊव्यो ते प्राणी, एहवो तप्त अत्यंत के ॥ ६० ॥ ७ ॥ सुधारस पूर समो महा शीतल, देखी तास दिदार रे ॥ ति म विश्वसेननुं मन उल्लसियुं, आनंद पाम्यो अपार के || द० ॥ ८ ॥ त व गुरुराज कहे फरि तेहने, विगतेंसुं विस्तारी रे ॥ वली वली शीखामण वारू, जेसुं हितकारी के ॥ ६० ॥ ए ॥ साडत्रीशमी ढालें सुपो श्रोता, उदय रतन इम बोले रे | मुक्ति तो तेहने वें मुह यागें, जे दर्शनथी नवि मोले के ॥ द० ॥ १० ॥
॥ दोहा ॥ कह्यो बे जो पूरवे, तो पण दृढवा काम ॥ सूरी कहे नृपसु त सुगो, एक चितें अभिराम ॥ १ ॥
॥ ढाल प्राडीशमी ॥
॥ हमीरांनी देशी ॥ रखेरे राचो कोई अन्यने, जीव सलामती सीम कुमरजी ॥ ण एहनी खाराधजो, निश्चयसुं धरी नीम ॥ कु० ॥ १ ॥ सुर पण न शके चालवी, दृढ तिम धरजो धीर ॥ कु० ॥ प्राणांतें पण प्रीवियें, व्रत नवि खंमियें वीर ॥ कुं०॥ २ ॥ शंका कंखा विगंडा वली, प र पाखंमी प्रसंग || कु० ॥ प्रशंसा पर धर्मनी, रखे करो मन रंग ॥ कु०॥ ॥ ३ ॥ पिंम प्रदान प्रपादिक, एहवा अनेक प्रकार || कु० ॥ समकितने ते सर्वथा, दूषणना देनार || कु० ॥ ४ ॥ श्रातम हितवंडक नरें, समकित राख शुद्ध || कु० ॥ थोडं पण जो मेलुं करें, तो मांगे मोहादिक युद्ध