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२०४ जैनकथा रत्नकोष नाग पांचमो. लाल ॥ गु० ॥ जिम देह दजाडी दीप, दिशा तम ने हणे दो लाल ॥ दिए ॥ ६ ॥ धर्मादिक संघलां मुज, जो क्ष्य वां सदा हो लाल ॥जो० ॥ तो पण करूं उपकार, एह जागी मुदा हो लाल ॥ ए॥ ७ ॥ यतः ॥ उ पकारिणि कृतमत्सरे वा, सदयत्वं यदि तत्र कोतिरेकः ॥ अहितसहसावल ब्धे, सघण यस्य मनः समासधुर्यः ॥१॥ अपास्य लक्ष्मीहरणोजवैरतां, मा चिंतयित्वा च तदश्मिर्दनं ॥ ददौ निवासं हरये महार्णवो, विमत्सरा धीरधियां हि वृत्तयः ॥ ५ ॥ अथवा मारो पद गुन, पोषे जे ए नितें हो लाल ॥ पो० ॥ सम्यक् माहरूं स्वरूप, जाणे जे जे श्रुतें हो लाल ॥जा ॥ ॥ जगमां मुज अवदात, जणावे जोपर्यु हो लाल ॥ ज० ॥ त्रिनुव नमां पर सिह, चला चोपा हो लाल ॥ च ॥ ए ॥ नहितो महारुं कु ण नाम बतुं जगमा लहे हो लाल ॥ 5 ॥ प्रसिदिना अर्थी. पुरुष, ते गुं गुं नवि सहे हो लाल ॥ ते ॥ १० ॥ यतः ॥ तमसाऽनिशं शशांको, गगनं न त्यजति खममानोपि ॥ कैतावती प्रसिद्धि, यस्मादन्यत्र परिवस तां ॥ १ ॥ विजय वर्धनपुरें लेई, सुलस श्रेष्टि घरें हो लाल ॥ सु० ॥ सुत अवताखो सोय, कर्मे को अवसरें हो लाल ॥ क० ॥११॥ नंदन धयं नाम यौवन आव्युं जिशे हो लाल ॥ यौ० प्रउन्नपणे ज पास कर्मे या प्यु तिशे हो लाल ॥क० ॥ १२ ॥ खडग यथाप्रवृत्त, करण नामें सही हो लाल ॥ क० ॥ वली एक बानी वात, कर्णमांहें कही हो लाल का ॥ १३ ॥ ए खडगें अरिनो सुंद, कहुँ तिम मारजे हो लाल ॥ क ॥ शी खामण मनमांहि, नली परें धारजे हो लाल ॥ ज० ॥ १५ ॥ मोहनो सी तेरमो नाग कश्कि को सही हो लाल ॥ का॥ मेली नगन्योतेर नाग, अधिक केती लही हो लाल ॥ १० ॥ १५ ॥ ज्ञानावरणादिक चार, थ रीनो त्रीशमो हो लाल ॥ १० ॥ नामने गोत्रनो नाग, तजीने वीशमो हो लाल ॥ त० ॥ १६ ॥ गणत्रीशने गणीश, कांक अधिका वली हो लाल ॥ कां० ॥ हणजे तूं दुशियार, ए खडगे मन रली हो लाल ॥ ॥ ए०॥ १७ ॥ ए सातें थाशे दीण, कटक तव एहनु हो लाल ॥क० मुहनंग थाशे विशेष, गजुं युं तेहy हो ॥ लाल ॥ ग ॥ १७ ॥ तव नि न्यपणे महामात्य, सम्यग्दर्शन तणुं हो लाल ॥ स० ॥ देखीश तूं स हि हार, जे सुखदाइ घणुं हो लाल ॥ जे ॥ १५ ॥ बत्रीशमी ए ढाल बो