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श्रीनुवननानु केवलीनो रास. 'एy ॥ १० ॥ मात पिता पर लोक, पहोतां तेहनी हो दिशा ते देखिने ॥ तव तसु वाध्यो शोक,घर हाटादिक हो पड्यां तिहां पेखिने ॥११॥ विध विध करे विलाप,भारति पूरे हो बातम निंदतो॥पूरव नवनां पाप, उदय आव्यां हो म कहि कंदतो ॥ १२॥ धर्म बुदें धरे मन्न, मावित्र केरां हो मृतकार ज करे॥कहे कवि उदय रतन, बवीशमी ढालें हो कर्म गतिनवि फरे ॥१३॥
॥दोहा॥ ॥ एहवे समय मलि एकठा, चारित्र धर्मादिक ॥ प्रेखी सदबोधने प्रीत वी, कर्म परिणाम नजीक ॥ १ ॥ तव ते जइ कहे तेहने, अमने एक स हाय ॥ आगे कह्यो ने आपवो, मन मोजें महाराय ॥ २ ॥ कथन तेह कह्या पनी,अनंत अनंतीवार ॥ पुजल पराया तिरों,तोहे न आव्यो पार ॥ ॥३॥ आज लगें जुन अमने, वाते पण ससनेह ॥ महाराजा मेलव्यो नथी. जीव संसारी तेह॥ अंगिकस्यं जे उत्तमें युगांतें पण तेह ॥ अवश्य न थाये अन्यथा, कहो स्वामी गुं एह ॥ ५ ॥ सर्वगाथा ॥ ४५ ॥
॥ ढाल सत्तावीशमी॥ ॥ पालीने बणाजो हो, मेडतिया ठाकुर ॥ ए देशी ॥ सदबोध मंत्रीने हो तव कहे कर्मनरेसरू, आंख नलाली एम ॥ वात सविगतें हो आज लगे पण एहनी, तुं नथि लहेतो केम ॥ स ॥१॥ ताकी दीन तुम सा मो हो थाणुं हुं हुं तेहने, पण मुफ बंधव प्राण ॥ फरिफरि ने पाडो हो वाले ते रांकने, जाणि प्रजानी प्रजानी हांण ॥ स० ॥ २ ॥ घरने वि रोधी हो आखर जो ताणुं घगुं, तो वाला वेरी होय ॥ मस्तकें लश्ने हो में पण निश्चय एकले, काज न थाए कोय ॥ स ॥३॥ नव्य स्वनावने हो लोकस्थिति उद्यम वली, काल परिणति आदि ॥ एदुनी रजा विण हो कां काज न नीपजे, पग पग मांमे ए वाद ॥ स० ॥ ४ ॥ ते माटे स दुसुं हो एकांतें आलोचिने, समय सही तुम काज ॥ निश्चयगुं करीने हो बोल जे बोल्या मुखें, तेहनी ने अमने लाज ॥ स० ॥ ५ ॥ कथन में तुम ने हो पहेलें जे कयुं अने, ते जिहां लगें पिंझमां प्राण ॥ वीसरी न जा ए हो तिहां लगि वीशे वसा, समको चतुर सुजाण ॥ स० ॥ ६ ॥ सदबोध पयंपे हो संप्रति सुणिएं लिए सुं, धर्म बुद्धि ते पास ॥ गई ते माटे हो आज पण अमने तुमे, झुं नहि मेलो तास ॥ स० ॥ ७ ॥ स्वनाव इणि ना