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१४७ जैनकथा रत्नकोष नाग पांचमो. यं के०) यानंद करनार एवा ( जलमपि के०) जलने पण (पिब के) पान कर, ( च के० ) वली (तान के०) ते (षड्रसान् के०) ब रसोने ( मा संदि के ) म रोक्य अर्थात् षट्रसनुं आस्वादन कर अने (काय क्वेशं के०) कायक्लेशने ( त्यज के० ) त्याग कर तथा ( अंग के०) अंगने ( विमलय के ) निर्मल कर. कदाच तुं कहीश के एवा उपदेश करवाथी मोद तो सर्वथा थाय नहिं परंतु नारकीनां सुःख उत्पन्न थाय ले. त्यां कहे डे के ना एम नहिं (क्रूरकुंनर्षिणा के० ) कूरगडुकृषियें (मोहोपायः के०) मोदनो उपाय (सुकरः के०) रुडी रीते थाय एवो ( उक्तः अस्ति के) कहेलो . ते कयो उपाय ? तो के (कोपं के०) क्रोधने (जय के०) जी त. जेथी ( शिवजं के०) मोदथी थयेला एवां (शर्म के० ) सुखने (न ज के) नज. अर्थात् सर्व विषयसुख जोगव अथवा चाहे तो न जोगव, पण कोप करीश नही तेवारेंज मोदसुखनी प्राप्ति थशे परंतु जो कोप क रीश अने बीजा विषयोनो नोग न करीश तो सुखी थाइश नहीं एम जा गजे. (शदेकुदोरखंमप्रनृतिरसबलात् के०) शदा, दुरस उध, खांम प्र मुख रसनां बल जे जे ते (सन्निपातेऽपि के०) सन्निपात थयो होय,तेने विषे पण ( अउष्टं के०) अष्ठ थाय परंतु कोप जय ते महारसबल वा स्ते सुबुध्येि क्रोधनो त्याग करवो ॥ ११ ॥ __ यांहिं कूरगडुनी कथा कहे . तुरमणिपुरीने विषे श्रीकुंजराजा राज्य करे . तेनो पुत्र ललितांग नामा हतो, एक दिवस गुरुनां वचन सांजली ने ललितांगें वैराग्य पामी दीक्षा ग्रहण करी, परंतु वेदनी कर्मना प्राबल्य थकी तेने कणेदणे नूख घणीज लागती हती,बदु क्रूर नोजन जमतो हतो तेथी तेनुं कूरगडु मुनि एवं नाम सदुयें पाडयुं, एकदा पजोसपना दिवसें तेने नूख लागी, त्यारे जमवाने बेगे, तेने साथें रहेनारा साधुयें क ह्यु के हे पापी ! बाज पर्वने दिवसें पण तुं जमे ले ? तो पण दमामंदिर मां रह्यो बतो कांही पण बोल्या विना पोताना यात्मानी निंदा करवा ला ग्यो के अरे पापी आत्मा तुं आजनो दिवस पण नूख सहन करी शक्यो नहि. एम आत्माने धिक्कारता तेने नोजन करतांज केवलज्ञान उत्पन्न थयु. त्यां देवतायें आवीने केवलज्ञाननो महोत्सव कसो, ते जोइ चार जण