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१४४ जेनकथा रत्नकोप नाग पांचमो. कोटने जांगीने पनी नलकुबरनी पट्टराणीने रावण कहेवा लाग्यो के तुंमा री विद्या गुरु थमाटे हे स्त्रि! ढुं तुने बतो नथी. एम कही पनी नलकूबर राजाने रावणे कर्तुं के या मारी विद्यागुरुस्थाने ले माटे महारी नगिनी य एने तुं पट्टराणी करी राख्य,वली कालेंकरी दशरथ राजाना पुत्र श्रीराम चंड वनवास गया त्यां दंमकाऽरण्यमा रह्या हता,तेवामां श्रीरामचंश्नी सी ताने माटे सिंहनादादि उपायो विकूर्वीने रावणे सीतार्नु हरण कस्युं ॥११॥
मूढः परस्त्रियमुपेत्य कुवाक्यबंध,घातापकीर्तिमृतिउगति मुःखपात्रम् ॥ स्याब्रह्मराजचुलणीरतदीर्घवत्किं, लदम दयादिव विधोगुरुतल्पगस्य ॥ परस्त्रीधारं ॥ १२ ॥ अर्थ-:( मूढ के) मूढ पुरुष, (परस्त्रियं के) परस्त्रीने (उपेत्य के) प्राप्त थइने (कुवाक्य के०) ऽर्यश, (बंध के०) रोधनादि, (घात के०) लकुटादिनु ताडन, (अपकीर्ति के०) अपकीर्ति, (मृति के०) मरण (उर्गति के०) उर्गति, इत्यादि (फुःखपात्रं के०) उखनुं पात्र, (स्यात् के०) होय, केनी पेठे (ब्रह्मराजचुलणीरतदीर्घवत् के०) ब्रह्मराजानी चूलणी नामा स्त्रीनेविपे आसक्त एवा दीर्घराजानी पेठे थाय ने, (गुरुतल्पगस्य के) वृहस्पतिनी स्त्रीसाथे व्यनिचारने करता एवा (विधोः के० ) चं माने (लदमदयादिव के०) कलानाक्यथकी जेम फुःख (किं के०) झुं नहिं ? थयुं ना थयुंज ॥११॥
आ श्लोकमां दीर्घ नृपनो तथा चश्मानो दृष्टांत होवाथी प्रथम दीर्घ नृपनी कथा कहे जे. कांपिठ्यपुरने विषे ब्रह्मराजा राज्य करे , तेनी चु हनणी नामें स्त्रीहती, ते ब्रह्मराजा मरण पाम्यो तेवारे तेनो पुत्र ब्रह्मद न चक्रीहतो ते घणोज नानो हतो,चुनणी दीर्घराजानी साथे विषय नोग ववा लागी एकदिवस पुत्र धने माता बेदु बेगले तेवामां एक हंसी ह ती ते कागडानी साथें रति सुख करती नजरें पडी ते जोस्ने तेज वखतें ते ब्रह्मदत्तें पोतानी माताने देखतां ते हंसीने मारी नाखी, ते जोइ चिह्न पीयें जाण्यु जे आ पुत्रे मने शिक्षा आपवा माटे आ काम कयुं जणाय ने अने मारूं चरित्र पण आ पुढे जाण्युं बे, तेथी लाखनुं घर करी उपर धोलाव्युं अने पुत्रनें कह्यु के हे पुत्र ! आ घरमां ताहरी स्त्री सहित तुं र