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१४२ जैनकथा रत्नकोष नाग पांचमो यं तेथी ब्रह्माने पोतानी दीकरी सरस्वतीनी उपर कुदृष्टि थइ पनी कोकें कडं के या गुं? अकार्य करवा इडो बो! त्यारें ब्रह्मायें जाण्यु जे ा सर्व अनंग एटले कामदेवनोज रंग ले. पडी कामने शाप आप्यो (च के०) वली (रौाग्निना के०) शंकरना त्रीजा लोचनमाथी निकलेला एवा अनियें करी (दाहं के०) दाहने झुं कामदेव न पाम्यो ? ना दाहने पण पाम्योज॥११६॥
आंहिं मूलदेव तथा कंदर्पनी कथामा प्रथम मूलदेवनी कथा कहे जे. रत्नपुर नगरने विपे मूलदेव राजा राज्य करे , तेनो मंमिक नामा शालो हतो,ते पोताना बनेवीना घरमांथी सर्व पदार्थो लश्ने सुख जोगवतो हतो, एम करतां पूर्वकतकर्मोदयथा तेने जुगारना व्यसनमा मन थयु, ते जुगार रमतां रमतां अनुक्रमें घर वगेरे सर्वस्व. हारी गयो, पनी इव्यहीनताने लीधे अत्यंत दुःखी थवाथो नगरमां चोरी करवा लाग्यो, नगरनां लोको ये मूलदेव राजानी पासे आवी फरीयादि करी, के आ तमारो सालो गाम मां चोरी बदुज करे , ते सांजली राजायें तेने वास्यो के हवेथी तारे श्रा काम करवू नहिं. था वखत आ तारो अन्याय हुँ सहन करुं बुं अने तुं महारो संबंधी होवाथी कांही पण शिक्षा तेने देतो नथी. वली केटलाए क दिवसें ते शालायें पोतानी वेनना घरमांज खातर पाडयुं, त्यारे गृहर दक शिपाश्च्ये तेने नाशी जतो जोइ पकडीने राजानी पासें थाण्यो, न्या यवंत राजायें तेने शूलीयें चडाव्यो ते मरण पामीने उर्गतियें गयो ॥११६॥
हवे कंदर्पनी कथा कहे जे एक दिवस ब्रह्मा ध्यान करता हता, त्यां कामदेव तेना ध्यानने नंग करवानो विचार करी ब्रह्माना मनमा पेठो, के तरत पोतानी पासें रमती एवी पोतानी दीकरी सरस्वतीने जोक्ने तेनी उपरज ब्रह्मानी सरागता थइ, त्यारे सहुयें जोइने कह्यु के था तो धर्मलोप थाय अने घणोज अनर्थ थाय ते वातनुं ब्रह्माने ज्ञान थवाथी मनमा विचार करवा लाग्या के बा ते शो गजब बन्यो ! जून आ कामदेवज आवा अधर्ममां मुने उतारवा तत्पर थाय ने एम जाणी पबवाडे जुवे ने तो त्यां कामदेवने नजरें जोयो त्यारें रोषयुक्त थइने ब्रह्मा बोल्या के हे पापी ! म हादेवना त्रीजा नेत्रना अनिथकी तुं बलीने जस्मीनूत थइ जाइश ? एम ब्रह्मायें शाप आप्यो, के तरतज शंकरने काम उपर क्रोध आववाथी