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________________ अर्थदीपिका, अर्थ तथा कथा सहित. ए त्यक्षमेतभवतापि दृष्टं, संसर्गजा दोषगुणा नवन्ति ॥ २ ॥ आस्तां सचेतस त्संगः, सदसत्स्यात्तरोरपि ॥ अशोकः शोकनाशाय, कलये तु कलिजुमः ॥३॥ जे माटें वृदने पण जलो अने जूमो संग ने, जुवो अशोकवद ते शोकनो नाश करनार ने अने बेहडानो वृक्ष बे ते क्लेशकारी ने एटला माटे कुलिंगि धादिकनो परिचय सर्वथा प्रकारें बांसवो. संवेगी, गीतार्थ, साधु अने सा धर्मिकनो परिचय, विशेपें करी करवो. ज्यां एटली सामग्रि होय, त्यां श्रा वकने रहेवं, अन्यस्थानकें न रहे. जेस्थानकें पोताना धर्मनो निर्वाह थाय अने स्थिरतानी वृद्धि थाय इत्यादि गुणसंनवे अन्यथा नंद मणियारनी पेठे अंगीकृत धर्मथी भ्रष्ट थाय. कह्यु केः- श्रावकने रूडे ठेकाणे रहे, ॥ नक्तं च ॥ जबपुरे जिगनुवर्ण, समय विउसादु सावया जब ॥ तब सया वसियत्वं, परं जल इंधणं जब ॥ १ ॥ आद्यपंचाशकेपि ॥ निवसेज तब स हो, सादणं जब होश संपान ॥ चेश्यघरा जंमिय, तयन्नसाहम्मिया चेव ॥॥ नावार्थः-जे नगरने विषे श्रीजिनेश्वरनां प्रासाद होय, तथा ज्यां सदा आगमना जाण साधु श्रावक होय, तिहां सर्वकाल वसवू. जिहां प्र चुर जल अने इंधण मले तिहां रहेवू ॥१॥ वली आद्यपंचाशक ग्रंथने विपे पण कडं बे के. जिहां साधुनु आवागमन होय, वली जिनप्रासाद जे गामने विषेहोय,ज्यांतत्त्वना जाण साधर्मिक होय त्यां श्रावकें निवास करवो. हवे ए मिथ्यात्वीना परिचयने विषे श्रीहरि नश्सरिना शिष्य सिमर्पि साधुनो दृष्टांत कहे . ते साधु बौदना मतना रहस्य यदवाने अर्थे गया, ते वखते गुरुयें वचन लीधुं जे जणीने पाचं आवq, शिष्ये पण ते कबूल कीg. पनी तिहांबोधनी श्रमा थर, पण वचननो खेंचाणो पाडो गुरु पासे आव्यो. गुरुये बौक्षमतनी श्रमा फेरवी, त्यारपती पानो बौचना मतनुं रहस्य ग्र हवा गयो. वली पाडो गुरु पासें याव्यो, त्यारें गुरुयें वली पण बौनी श्रा फेरवी. एम एकवीश वार गयो ने आव्यो. तेवारें गुरुयें प्रतिबोधने अ थै शकस्तवनी ललितविस्तरा नामें टीका करी. तेणें करी तेने प्रतिबोधीने दृढ कयो, पड़ी श्रीगुरु पासेंज रह्यो. पांचमो अतिचार कह्यो, एम समकि तना अतिचार संबंधी जे पाप बंधा' होय, ते सर्व निंउं इत्यादि पूर्ववत्. ___ए सम्यक्त्व ते सर्व प्रकारे सर्व रीतें मिथ्यात्वने परिहारपणे निष्कलंक नावें आदर, ते मिथ्यात्व बे प्रकार- जे. एक लौकिक मिथ्यात्व अने
SR No.010249
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages477
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size63 MB
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