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________________ अर्थदीपिका, अर्थ तथा कथा सहित. ए मुश्ने विषे लवण समुनी एलानुं प्रयोजन नही,तेम जरतदेवनी लानु झुं प्रयोजन ? एम को पूजे तिहां कहे , के जरतदेवनी साथें सौधर्मे ने स्वामिपणानो संबंध में, ए प्रयोजन माटें पूज्युं, त्यारें परमेश्वर का के पोताना धर्मने विषे वज सरखो दृढ एवो विजयपुर नगरने विषे विजय राजा जे. जेम वायराथी मेरु पर्वत चलायमान थतो नथी, तेम तेने पण कदापि कोई देवता आवीने पोताना पराक्रमथी चलावे, तो पण ते पोता ना धर्मथकी न चले. एवं परमेश्वरनुं वचन सांजलीने इंश हर्षित थश्ने पो तानी सनामध्ये विजय राजानी प्रशंसा करतो हवो. ते प्रशंसा सांजलीने कोक मिथ्यात्वी देवता एम विचारवा लाग्यो के,दुं जश्ने इंश्नु वचन खोटुं करुं ! हवे ते देवता जैन अवधूतनो वेष करी,विजय राजानी पासें आवी, पोतानी कलाना कुशलपणायें करी,राजाने रीझवी वश कस्यो. जेम विनीत शिष्य गुरु वचन सत्य करी माने, तेम अवधूतना वचन राजायें मान्यां. हवे एकदा राजानी साथें अवधूत धर्मचर्चा करतो, निगोदादिकना सू क्ष्म विचारना संशय देखाडतो राजाने पूवा लाग्यो. तत्त्वप्रकाशमां माह्या एवा राजायें जेम हाथी सुंढे करी वृदने समूल उन्मूलन करे तैम युक्तिरूप सुंढे करी शीघ्रपणे तेनो मूलमाथी सर्व संशय काढयो, त्यारे अवधूत रा जाने कहेवा लाग्यो. अहो ! सर्वज्ञनो धर्म घणो रूडो , जेथी कर्मक्ष्य करीने मोदें जवाय,परंतु विशेषपणे ते धर्मनो कोइथी निर्वाह थाय नहिं, ते घणो कुष्कर , खड्गधारानी गति सरखो ,माटे तेने रूडी रीतें करवाने को ए समर्थ थाय? अपि तु कोइ न थाय. त्यारे राजायें कडं जे ए धर्मना निर्वाहक साधुजन . राजानुं ते वचन सनिलीने ते अंवधूत मस्तक धू गावतो कहेवा लाग्यो के, ए ऋषियो तो आमंबरी जे. एना अंतःकरणनी स्थिति कोण जाणे में ? राजा, अवधूतनुं एवं वचन सांजलीने खेद करतो एम कहेवा लाग्यो के,हे नूंमा ! तुं ए झुं बोले ? जैनमुनि माहानाग्यना धणीने, वीतरागना मुनियोना धर्ममां वो संवाद क्यांय नथी? जेम सर्वत्र नुं वचन तेम जैनमुनिनुं वचन पण जाणवं. त्यारें फ़री ते अवधूत कहेवा लाग्यो के पूर्व हुँ ए कृषियोमा रह्यो बुं,तेथी सर्व जाणुं हुं जे ए कहे जे ए क, अने करे ने बीजं, जो एम न होय तो हुँ केम कहुँ के ए मात्र दर्शन रूप ले पण महारा सर्व जाणेला ये तो हुँ जूतुं कम बोलुं ? माटे हे राज
SR No.010249
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages477
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size63 MB
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