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________________ ४४ जैनकथा रत्नकोप नाग चोयो. अर्थः-सर्वजीचने दुं खमार्बु अने में जे कांश अनंतनवनेविषे मोह अज्ञानपणे पीड्या एवा जीवोने अनेक प्रकारनी पीडा उपजावी होय ते महारी अपराधरूप पुष्टचेष्टाने पण सर्वे जीवो तमे खमो एटले सर्वेजीवो तमे महारी नपर दमा करो अर्थात् महारे ते जीवोनी साथै कर्मबंध न हो य एम करुणालुपणुं जणाव्युं हवे हेतु कहे ने. सर्वजीवोनी साथै सर्वनृत सत्वोनी साथे महारे मैत्रीनाव हो, महारे कोई प्राणीनी साथै वैर अप्री ति न हो, एटले मुजने मुक्तिना लानना हेतु ए सर्वजीव हो अने ढुंपण ते सर्वजीवोने यथाशक्तियें मुक्ति पमाडं अर्थात् ढुं को जीवने मोद जतां विघ्ननो करनार न थालं, तत्व जाण्यु डे माटे महारी निंदाना करनारनी नपर पण महारे पनाव नथी. झानांकुशमाहे का ते के मादरी निंदा करीने पण जो लोक संतोपने पामतां होय तो ते प्रयास कस्याविना म हारे अनुयहरूप जे; केम के कल्याणना अर्थी पुरुप परने संतोपनी पुष्ट ताना हेतुयेंकरी अर्थात् परने संतोप वधारवासारु ःवेंकरी नपालां एवां धननो पण परित्याग करे . वे ए मैत्रीनावनानुं स्वरूप कहे जेः-नाऽकाको पिपापानि, माचनू त्कोऽपि दुःखितः ॥ मुच्यतां जगदप्येपा, मतिमंत्री निगद्यते ॥ १ ॥ जा वार्थः-कोई प्राणी पाप करशो मां,कोई प्राणी दुःखी म था कोइरीने पण जगत् दुःखथी मूकान, एवी जे मति ते मैत्री जावना कहेवाय ने. वैर जो थोडं होय तो पण ते आ जव अने परनवनेविपे महा अनर्थन करनालं थाय, वैर ते कौरव अने पांमवने अढार अदौहिणी कटकना द यतुं करनाऊं थयुं तथा कोणिक अने चेडामहाराजाने अनर्थकारि थयुं. श्रीनगवतीसूत्रमा कह्यु जे जे ॥ चेडय कोणिय जुने, चुलसी बन्नुअ लरक मणुयाणं ॥ रह मूसलंमि नेया, महासिला कंटकएचेव ॥ १ ॥ इत्यादि चार गाथानो अर्थ कहे :-पंचमा अंगमांहे विसंवादपणे चेडामहाराजा अने कोशिकना युनेविपे चोराशी लाख अने न्नु लाख मनुष्यनो संहा र थयो ते रथमुसलनो संग्रामने विपे महाशिला कंटक संग्रामने विपे थयो ॥ १ ॥ वरुण नामा सारथी सौधर्मदेवलोकें गयो तथा तेनो मित्र मीने मनुष्य थयो, नवलाख माणस मरीने मत्स्य थयां, शेष बीजा जीव मरण पामीने तिर्यंचगति तथा नरकगतिमां गया ॥ ॥ कालकुमार आदिक द
SR No.010249
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages477
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size63 MB
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