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________________ ४३० जैनकथा रत्नकोष नाग चोथो. __ आशंसा करतो थको जो प्रकृष्ट धर्मनो आराधक होय तो पण हान फल पामे धर्मरूप चिंतामणीरत्नने आशंसारूप तुन्न मूव्ये वेंची नाखे ॥ कडं में जेः-सीलवयाइं जो बहुफलाई हंतुण सुहमहिलसधि उब्बलो तवसी कोडीए कांगणिकुण ॥ १ ॥ नावार्थ:-जे शीलवतादिक घणा फ लनां प्रापक ने ते फलने हणीने तुबसुखनी वांडा करे एवी बुधियें उबल एवो जे तपस्वी होय ते कांगणीनेअ\ कोडी धन गमावे दे ॥१॥ ए कार णमाटे नियाj करवानुं परमेश्वरें सर्वथा निषेध्यु . ते नियाणां नव प्रकारनां ने ते कहिये जैयें. प्रथम कोऽक साधु श्रा दिक एवं निया| करे के देवता सादात कोणे दीठा के माटे आ राजा ने तेज देवता जाणवा एवं चिंतवीने निया| करे जे था तप अनुष्टाना दिकनुं जो फल होय तो ढुं श्रावते नवें राजा यावं ते जीव मरीने देव ता थाय तिहांथी चवीने राजा थाय पण तेने ममकेतादिक धर्म बोधवीज पामधुं उर्लन थाय ते प्रथम राजानुं नियाएं जाणवू. २ बीजं कोक जीव एवं विचारे के राज्यपदवीमां तो बदु जंजाल डे माटे महारा तप अनुष्टानादिकनुं जो फल होय तो दुं श्रेष्ठियादिकनां कु लमा उपजूं तो सारं एवं निया| करे ते वीसुं शेत आदिकनुं नियाj. ___३ तेमज कोक जीव विचारे जे पुरुषमां उपजवाथी व्यापार करतो पडे तथा राजसेवादिकमां संग्रामादिक करवा संबंधि बहु चिंता रहे माटे महारा तपअनुष्टानादिकनुं फल होय तो स्वीपणे उपजुं ते त्रीजुं स्त्री, नियाj. ___४ कोश्क जीव एम विचारे जे स्त्रीने तो नित्य पुरुपनीपासे पराधीन पणुं ले वली ते पराजवनुं स्थानक डे माटे महारा तपना प्रनावथी ढुं पुरुष पणुं पामुं तो सारं ते चोयं पुरुप, निया| जाणवं. __५ कोश्क जीव एवं विचारे जे मनुष्यना नोग अशुन ने देवताना नोग सारा ने तेमाटे जे देव बीजा देव देवीने विकुर्वीने अथवा पोर्ते देवदेवीनां रूपने विकुर्वीने विषय सेवे तेवो था तो नलु ए परप्रविचारनुं नियाj. ६ कोश्क एम विचारे जे देवतामांहे तो इंशदिकनी आगल पराधीन सानुं दुःख डे माटे ढुं देवीपणे उपखं तो सारं अन्यदेवतानुं रूप विकुर्वी ने विषय जोगवीश. ते बहुं सप्रविचारनुं निया| जाणq.
SR No.010249
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages477
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size63 MB
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