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अर्थदीपिका, अर्थ तथा कथा सदित. ३जए र्य जो सिदिपाम्युं तोपण सऊन पुरुष तेनी प्रशंसा करे नही. अने सुपरी दित कार्य जो बगडयुं होय तोपण तेविषे लोकमां निंदा नं थाय ॥ १ ॥
पढ़ी राजानी बाझाथकी शेउने घेर ते प्रधान आव्यो राजाना सुनटो ने पडेला देखीने विशेष शंकाकुलपणे शेत अने शेठनी स्त्रीयें बोलाववा पूर्व क घरमांहे तेड्यो ते आवी पारणामांहे रत्नजडित दडो उलालता एवा बालकनी पासें बेसीने स्नेह सहित कोमलामंत्रणे करीने नेने बोलावतो हवो हे कुमारे ! राजाना मनुष्यनी उपर उर्निवार कोध करवो ते तमारे युक्त नही. केसरीसिंहनी पेठे तहारी अचिंत्य शक्ति बे. तो आशृगाल स रखा सेवको उपर शो पराक्रम करवो. यतः ॥ सिंहः करोति विक्रम, मलिकु ऊंकारनूषिते करिणि ॥ न पुनर्नखमुख विलिषित, नूतलकुहरस्थिते नकुले ॥ भ्रमरकुलना ऊंकारथी शोलायमान एवा हाथिउपर सिंह पराक्रम करेने प रंतु नोरथी अने मोहोढाथी खणेली नूमिनी बखोलमा रहेला नोलिया उ पर पोतानो पराक्रम देखाडतो नथी. ___ एटला माटे हे कुमर ! ए बीचारा रांकनी उपर क्रोध म करो जे या बीने पगें लागे तेनी उपर कृपा राखवी जोश्ये एटलुं करवाथीज सर्वने चमत्कार जेवू लाग्युं माटे हवे एमना उपर करुणा करो. एवी प्रधाननी उत्तम वाणी सांजली लगारेक हसीने कुमर बोल्यो हे महामतिना धणी! तुं सांजव्य अमारो कोप कांश राजाना सुनटो नपर नथी ए कां अमारा अपराधी नथी अमारो अपराधी तो राजा ने माटे राजा संग्राम करवा महारी साथै आवे तेनी हुँ वाट जो बुं केम ए राजा संग्राम करवा था टलो विलंब करे, वली संग्राम कस्याविना राजानो कषाय केम उपशमे? माटे एकवार ढुं संग्रामनुं कौतुक पण देखाडं जे संग्राम थाम थाय डे, तेथी तुं उतावलो नतावलो जा अने वहेलो वहेलो राजाने मोकव्य. __ एवां ते बालकनां चमत्कारिक वचन सांजलीने प्रधान मनोहर वाणी यें करी कुमरने समजावे के के हे कुमार ! राजाने पण कोक चित्तनम थ यो देखाय ने जेमाटे तेने तमारुं धन लेवानो अनिलाष थयो जेम कोश्क स्त्रीलुब्ध पुरुष होय ते महासतीना चित्तनो याशय लश् न शके जेम ते स तीना चित्तनो आशय लेवो पुष्कर ने तेम तमाळं धनलेवु पुष्कर डे ते वात में हवे जाणी तमा स्वरूप पण जाण्युं तमे बालकरूप पण पूजनीय बो