SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 204
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७ जैनकथा रत्नकोप नाग चोयो. कामनोग जे जे ते अनर्थनी खाण जे ॥२॥ इत्यादिक वैराग्र नावना ना वीने मुखथी नवकारगणी पड़ी शयन करवू तो कुस्वप्न दोय ते सुस्वप्न था य कुस्वप्ननो लान नथाय एम करतां बतां पण जो कोश् मोहना नदयथी स्त्री सेवनादिक कुस्वप्न साधे तो तरत उठी इरियाव हिया पडिक्कमीने एक सोने आठ श्वासोडासनो कानसग्ग करवो. तथा स्त्रीनां इंडियोनुं अवलोकन अने स्त्रीनी साथें बोल पडे तिहां सर्वत्र दृष्टि निवर्त्तनरूप यत्न करवो. यदाद ॥ जेमके कह्यु डे गुजोरूवयण करको, रवंतरे तहथणंतरे दिकं ॥ सादर ननदिहि, नयबंधइ दिहिएदिति ॥१॥ नावार्थः- कामगर्नित वचन जांखवां तथा कारखना अंतर, जं घाना अंतर,तथा स्तनना अंतरमाहे जोड्ने तिहाथी दृष्टि संहरीलेवी अने स्त्रीनी साथें दृष्टियें दृष्टि बांधवी नही. एमज परस्त्री आश्रयी गृहस्थने ब्रह्मचर्यनी नवगुप्ति पालवानो उद्यम करवो तेनां नाम कहे :- १ स्त्रीनी वस्तिमाहे न रहेवं. स्त्रीनी कथा न करवी, ३ स्त्रीने आसने न वेस, ४ स्त्रीनी इंडियो न जोवी, ५ जीत ने अंतरे न रहेg, ६ पूर्वे करेली कामक्रीडा न संभारवी, ७ घाj स्निग्ध जोजन न करवु, ७ घणुं चांपी पेट नर। जमवू नही ए शरीरनी विनूपा न करवी. ए नव वाड जाणवी या ज्योतिषने विषे वात्स्यायन शास्त्रने विपे क ह्यां ने कामनां चोरासी आसन तेनु सेवन करे अतृप्त थइ नपुंसकादिकनुं सेवन करे, हस्तकर्म करे तथा काष्ट, पाटीयुं स्त्रीना रूपनुं माटी, तथा चर्मादिकनुं घडयुं इत्यादिक जे कामनां उपकरण तेणेकरी जे कंदर्पनी क्रीडा करवी ते त्रीजो अनंगक्रीडा अतिचार जाणवो. ४ चोथो विवाह ते पारका पुत्र पुत्रिकादिकने कन्यादान फलनी लाल चें अथवा स्नेहादिकें करीने विवाह करवू तेने पर विवाह करण अतिचा र कहियें. इहां स्वदारा संतोषी सुश्रावकें पोतानी स्त्री थके परदारा वर्ज नादिकें पोतानी स्त्री तथा गणिकाथकी अन्यस्थानके मन वचन कायायें करीने मैथुन न करवू, न करावq एवीरीतें जेवारें व्रत अंगीकार कस्यो होय तेवारें अन्यना विवाह करवानेविषे तत्त्वथकी जो जोश्ये तो मैथुनज करा व्युं होय ए नांगो ते श्रावके लीयो अने ते एम कहे के ए विवाह में कस्यो करूं पण मैथुन करतो नथी एवी नावनायें तो व्रत रहे जे परंतु नंग थ पा.
SR No.010249
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages477
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size63 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy