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श्रीमोदविवेकनो रास. विकारो रे ॥ मो० ॥ ४॥ शत्रु वडो संसारमां, पावक पाप निधानो रे॥ पूजीजें पुण्य कारणें,ए ए मोह विधानो रे ॥ मो० ॥ ५॥ आरंन अधिका जेहथी, वाधे नवजल पूरो रे ॥ कन्यादान कहीजियो, ए ए मोह अंकूरो रे ॥ मो० ॥ ६ ॥ बाहिर शुचि जलथी दुवे, तिहां माने धर्मनावो रे ॥ ती थैकरजीन आदरे, ए ए मोह सनावो रे॥मो॥७॥ माखी मधु दानें दिये, होमे धान्य अपारो रे ॥ धर्म बुद्धि तिणझुंधरे, एए मोह प्रकारो रे ॥मो० ॥ ॥ पति मूकी पर पुरुषने,सेवे साहमी शुदि रे ॥ एकाकार करी मली, ए ए मोह कुबुद्धि रे ॥ मो० ॥ ए ॥ सुरनि मुख पुढे कहे,बदु देवोनो वा सो रे ॥ शुरू कहे मल मूत्रने, ए ए मोह विलासो रे ॥मो० ॥ १० ॥ सं सारी देवां कने, मागे मोद गमारो रे ॥ गेहीने गुरु करि गणे,ए ए मोह विकारो रे ॥ मो० ॥ ११ ।। गेही धर्म महोटो सही, जसु आश्रय सब को यो रे ॥ इम बोले जगमा घणा, मोहें मोह्या लोयो रे ॥ मो० ॥१२॥ सोनानी सुरनि करी, मंत्र जपी विप्र लेह रे ॥ नाग करी वहेंची लिये, ए पण मोहना गेह रे ॥ मो० ॥ १३॥ कर्षणी कहे अम उपरा, धर्मी केहा होय रे ॥ पशु पंखी नर कण ग्रहे, अमथें मोह ए जोय रे ॥ मो० ॥१४॥ वेद पुराणें पालियो, वली मार्कम पुराणो रे ॥ निशिनोजन क र नहिं, समजो चतुर सुजाणो रे ॥ मो० ॥ १५॥ सूरज किरणें फरसि यो, गंगारो पण पाणी रे ॥ पीवा योग्य पावन अजे, निशि नवि पीवे धी रो रे ॥ मो० ॥१६॥ एह वचन निज ग्रंथरो, माने नहिय लगारो रे ॥ रसना लोनी दूर रह्या, ए ए मोहविकारो रे ॥मो० ॥१७॥ अवर घरे बेठो पिता, पिंम लहे नहिं नोरा रे ॥ मूढमति मूंकी रह्या, ए ए मोहना दोरा रे ॥ मो० ॥१॥ तो परनव पहोतो पिता, निज घर बेतो पुत्रो रे॥ पिंम दियो पहोंचे नहि, परतिख देख पवित्रो रे ॥ मो० ॥ १७ ॥ परणावे वृदा जणी, चेतननी परें जागी रे ॥ ग्रंथ रचे व्यनिचारना, ए ए मोह नी खाणी रे ॥ मो० ॥२०॥ चेतनने माने नहिं,शून्य गिणे संसारो रे॥ क्षणिकवाद केई धरे, मोहतणा विस्तारो रे ॥ मो० ॥१॥ काननमां मृ गलां रहे, सूकां तृण आहारो रे ॥ ते मृग मारे मानवी, ए ए मोह प्रका रो रे ॥ मो० ॥ २२ ॥ मोह सोह बाधा घणी, राज्य वध्यो अति जोरो रे ॥ तमची आणा माने नहिं, बल बलि को फोरो रे॥ मो० ॥ २३॥ ती