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श्री सम्यक्त्व सित्तरी.
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( चारय हिस्स के० ) चारक घर एटले बंधिखानानुं घर तेहने ( चागि To) त्यागवानी वा तेने निर्वेद एवं नामें समकेतनुं लक्षण कहीयें, एटले संसाररूप दिखानाना घरने उतावले त्यागवानी जे इवा करवी निर्वेद जावो संसाररूप बंदीखानाना घरथी निर्वेद एटले निकलवं.
केटाएक आचार्य संवेगनो अर्थ नववैराग्य कहे बे, अने मोहनी air, तेहने निर्वेद कहे बे ए अर्थ पण घटे बे ॥ यतः निवेएणं नंते जीवे किंजय निवेएणं जीवे दिवमाणुस्स तिरिबएस कामनोगेसु विरक् माणे निवेयं हवमागत्ति सवविसएस विरजत्ति सवविसएस विरमाणे प्रारं परिग्गह परिवार्य करेंति आरंभ परिग्गह परिवार्य करेमाणे संसार मग्गं वुद्धिदंति सिद्धिमग्गं पडिवन्नेय नवति ॥ इति उत्तराध्ययन सूत्रे ॥ ए गा थाना पूर्वार्थ कह्यो, उत्तरार्द्धनो अर्थ कथा कह्या पती खावशे.
हवे ए निर्वेद लक्षण पर हरिवाहनराजानी कथा कहीयें यें:- एहि जनरतदेत्रे जोगवती नगरीयें इंइदत्तराजा राज्य करे बे, तेनी मणिप्रना नामें पट्टराणी ने तेने हरिवाहन नामें पुत्र ले. हवे तेहज नगरमां जमंदर नामें सुतार से बे, तेनो नरवाहन नामें पुत्र बे, तथा वसुसार नामें श्र से बे. ते धनंजयनामे पुत्र ते हवे राजपुत्र हरिवाहन तथा सुतार पुत्र नरवाहन ने श्रेष्ठ पुत्र धनंजय, ए त्रणेने मांहोमांहे मित्राचारी थइ, प्रतिदिन एकता मली रमतक्रीडादिक करे.
एकदा राजायें पोताना पुत्रने घणीज खाकरी शिखामण यापी जे हे पुत्र ! तुं मित्रोनी साधें रमत कया करे बे ते मूकीने त्र्यायुधान्यास कर. नहीं कां महारो देश मूकीने चाल्यो जा. एवी राजानी वात सांजली त्रणे मित्रे मली यापसमां विचार कस्यो, के जो राजायें देश मूकवा कयुं, तो हवे आपने परदेशेंज जावुं, घने यापणा जाग्यनी परीक्षा करवी. एवं विचारी
जण पोताना पिता प्रमुखने पूढया विनाज देशांतरें चालता यया. मार्गे जातां महोटा रयने विषे पड्या. एवामां एक गर्जे पोतानो गुंढादम चो करीने हरिवाहन कुमरनी साहामो दोडयो. एटले शेठनो पुत्र ने सू तारनो पुत्र एवे जग नाशि गया. पढी गजशिकामां विचक्षण एवा कुमरें पोतानी कलायें हाथीने वश कीधो. पोतें ते हाथीनी उपर चडी बेठो खने पोताना वे मित्रोने शोधवा चाल्यो घणोय शोध कस्यो, पण मित्र मल्या नहीं.