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प्रस्तावना: पण तेज विषयने पुष्ट करनारी : एवी रीतें न्हामी महोटा चार ग्रंथे क रीने या प्रथम नाग समाप्त कस्यो . या जांग वांचनाराउने अवश्य गु ए करनारोज थाशे एवी ममे श्राशा .
जेम आ प्रथम नाग संपूर्ण उपाए तैयार थयो ने तेम बीजो जाग त था त्रीजो नाग पण संपूर्ण नपाइ तैयार थईगयेलो.जे. अने चोथो नाग पण अडधो बडध पाई गयेलो ले तोमण जी श्री ग्रंथना पूर्वं श्रयेला ग्राहकोनां नाम में दाखल करेला नवी तेनुं कारण ए जे. प्रथमतो था ज दिवसपर्यंत मात्र या संथने आश्रय देनारा सजननी १७५ ने बाशरे सहीयो यावी , तेमां घणी खरी सहीयो तो बाहिर देशावरथीज श्रावे ली, पण महोटा व्यवान धनाढयो तरफथी जे महोटी मदत मलवा नीयाशा , तेवा साहेबोनी पासे माराथी हजी जश्-शकायं.नथी, तेथी हवे ढुंचार पाठ दीवस मदारूं लखकानुं तथा बापवानुं काम बंध राखी ने तेमनीपासें जा विनंती करीने संख्याबंद पुस्तकोनी मदत लश्ने पनी या पुस्तकना चोथां अथवा पांचमा नागमा समस्त नदारता दर्शावनारा महान् जनोनां नाम दाखल करी महारा मनने आनंद पमाडीश.
उपर लख्या प्रमाणे महोटी धनाढयो पासे सहीयो.लेवा जवान हाल मोकुफ राखी कदाचित :पोणाबशने पुस्तकोना आश्रय बापनारा देशावर वाला साहेबोनांज नार्म यात्रण जागा दाखल करूं तो कदाच को अज्ञ जनना मनमां एवीज शंका उत्पन्न थाय के जैन दर्शनमां पुस्तको ना वांचनारा तथा आवा पुस्तकोने नापी प्रसिद्ध करनारने.याश्रय थाप नारा अने शास्त्रना रहस्य समजनारा परीक्षक. लोकोनी घणीज न्यूनता . बे, एवी लघुता थवाना जयथी धाश्रय पापनारा स्वल्प संख्यावाला सा हेबोनां नाग या पुस्तकमां दाखल करवानी मारी हिम्मत 'चाली नहि.
वली था जैनकथा रत्नकोष नामें पुस्तकना बागलथी ग्राहक थयेला त था थनारा साहेबीने विनंति करवामां आवे जे के या पुस्तकना अगाउ थी ग्राहक थनारा साहेबोनी सहित लेवाना लिष्टमां एम लरव्यु ले के था ग्रंथना ब नाग करवा तेमां सवालद लोक संख्यानो समावेश करवो अ ने जो या ग्रंथना बे हजार पुस्तकनां बागलथी ग्राहक थाय तो वली एक वीश हजार श्लोक संख्यानो एकं सांतमो नाग पण गपीने अगारथी