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सिदूरप्रकरः
२०७ खंमै ॥ संचरत कोप उख रुपजै, बढै तृषा जिम धूपमहं ॥ करुना विलो प गुन गोप जुत, कोप निसिह महंत कह ॥ ४ ॥
कथाः- क्रोधत्याग उपर गजसुकुमारनी कथा ॥ सौराष्ट्र देशे झारिका नगरी , तिहां कृष्णवासुदेव राज्य करे. जे: एकदा देवकीजीयें गवाहें बेग थकां कोई स्त्रीने पोताना बालकने रंमाडती दीती, ते जोड्ने मनमां चिंतव्युं जे मुफने पुत्र होय तो हुँ पण दुलरावं ? एम धारी चिंतातुर थइ रही. तिहां श्रीकृष्ण चिंतानुं कारण पूब्यु. देवकीजीयें बलात्कारथी पोतानुं अनिलषित कह्यु. पडी माताने संतोषी पोषधशालायें आवी अ हम तप करी हरणीगमेषी देवता आराध्यो, ते प्रसन्न थश्ने कहेवा लाग्यो के तमारी माताने पुत्र थाशे, पण ते यौवनावस्थामां दीक्षा लेशे, पंजी देवप्रनावें नवमासें देवकीजीने पुत्र थयो, गजसुकुमार नाम दीधुं. अनुक्रमें सकलकला नण्यो, यौवनावस्था पाम्यो, सोमिल ब्राह्मणनी पुत्री परम्यो, एवामां श्रीनेमिनाथ समोसस्या, तेमनी पासेंथी उपदेश सांजली माताने समजावी दीक्षा लीधी. विविध शिदा पामीने प्रजुने पूंडयुं के महाराज! शीघ्र मोद थापो. प्रनु बोल्या के स्मशानमां कानस्संग्ग करीयें, दमाथी उ पसर्ग सहन करीयें, तो तरत मोदप्राप्ति थाय, ते सांजली प्रनुनी याज्ञा मागी मसाणमा जकानस्सग्ग कसो, तेवारें गामथी बावतां सोमिल ब्राह्मणें जमाइने दीगे. के तरत क्रोध उपनो जे एणे महारी पुत्रीने फुःखी करी तो हूं पण एने फुःखी करूं? एम विचारी रीशथी मस्तक सूची माटीनी पाल बांधी, मांहे खेरना अंगारा नखा. गजसुकुमार चिंतव्युं के ए महारो नपकारी थयो , एना उपसर्गथी महारां कर्म क्य थशे ? एम निश्चल ध्यान धरी केवलज्ञान पामी मोर्दै गयो. प्रजातें श्रीकृष्ण जगवान ने पूब्युं के महारो लघुबंधव क्यां ने ? ते कहो. जगवाने सर्व वृत्तांत कह्यु तेवारें श्रीकृष्णें पूज्यु के मारनार कोण ? जगवानें कह्यु के हमणां मार्गे जातां तुऊने देखशे के तरत तेनुं हृदय फाटी जाशे अने मरण पामशे! श्रीकृष्ण पण जगवानने वांदी पाढा वव्या अने. मार्गम् तेमज दीतुं, ते वारें मनमा खेद पाम्या. ए रीतें गजसुकुमार क्रोध जीतवाथी मोड़ें गयो. अने सोमिल ब्राह्मण मरी उर्गतियें गयो. ए माटें क्रोधनो जय करवो ॥ इति क्रोध जयोपरि ाजसुकुमारकथा ॥ ४ ॥