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________________ इस प्रकार समाधा-1 का तुलना पाप्तियों से तथा फर्म पत्तियों से का जा सकता है । ५५ वर्षो बाद स्त्री की योनि गर्भाधान के योग्य नहीं रहता तथा ७५ वर्ष बाद पुरुष का वो ये भो ही न हो जाता है । गर्भाधान की पूरी प्रझ्यिा आयुर्वेदिक गंधों - अष्टांगहृदय, २ चरकरे और सुदुत में दी गयी है । गर्भाधान के बारे में सुश्रुत का मत है कि दो स्त्रियां भी यदि आपस में मथुन .. तो उनको रज संयोग से गर्भधारण हो सकता है । इसके अतिरिक्त यदि कोई ऋतुस्नाता स्त्रो स्वप्न में मथुन करती है तो मी उसके जार्तव को वायु पार गरिन में गर्म पैदा कर देता है । दोनों गर्मों में पिता के गुण अर्थात् हड्डा, मुं, दाड़ी, नस आदि नहीं होते । गर्म के प्रकार गर्भ चार रूपों में निष्पन्न होता है- स्त्री , पुरुष, नपुंसक तथा पि (मांसपिण्ड)।७ को अपिता से पुत्र, रज या ओज की अधिकता से पुत्री, ----------------- १- तंदुविचारिक काh, १३॥ १४ २- अष्टांग हृदय, १।३२-३६ ३- चरक, १२३ ४- सुश्रुत, ३।१३ ५- वही, २।५० ६- सुश्रुत, २०५१ ७- ठाणं, ४. ६४२, जैन विश्व भारतो, लाडनूं (राजस्थान) चचारि मणुस्सी गव्मा पण्णचा, तं जहा इत्थितार, पुरिसचार, णपुंसगतार, पितार । ८- वही, ४.६४२।१-२ : अप्पं सुक बहुं ओयं, त्या तत्थ पजायति । बप्पं ओर्य बहुं सुकं पुरिसो तत्थ जायति ।। दोईपि रचतुक्काण, तुलभावे णपुंसओ । इत्थी-बोय समायोगे बिष तत्थ पजायति ।।
SR No.010245
Book TitleJain Karm Siddhanta aur Manovigyan ki Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnalal Jain
PublisherRatnalal Jain
Publication Year
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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