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५- शोकास्त होने से,
६- सदा तुमती रहने से, ७- कभी ऋतुगली न होने से, - गर्भाशय नष्ट हो जाने से, ६- गर्भाशय की शकिपीण हो जाने से, १०- उप्राकृतिक कामको डा तथा अधिक पशुन सेवन करने से । २ ११- ऋतुपाल की निश्चित सीमा तक पुरुष सहवान न रहने से, १२- समागत शु पुद्गलों के विध्वंस्त हो जाने से, १३- पित्तप्रधान शोणित के उदोण हो जाने से, १४- देवपयोग
१५ - पुति कर्मों के उदय से । ३
पा गट ने आयुर्वेदिक दृष्टि से विषय में विस्तृत विवेचन किया है ।
१- ठTrip . १८४: पंचा ठाणे हि त्था पुरिलैण सद्धिं संवसमाणा वि गर्भ
णो धारेजा, तं नहा- (१) अप्पयोधणा, (२) अतिक्तजोव्वणा, (३) जातिपंझा, (४) गेलण्णपुट्ठा, (५) दाममण सिया-- इच्चेतेहिं पंचा ठाणे हिं
इत्थो पुरिण- सद्धिं तव समाणा विगम णो धारेज्जा । २- ठाणांग , ५ . १८५ : पृ० ५७७ : -- पंचाह ठाणे हि इत्थी पुरिलैण उद्धि समसंवाणीव णो गव्म धारेज्जा
तं जा-- १- णिच्चोउमा २- अणोउया (३) पाणणतोया ४- वाविसोया, ५- अगंगपविणी । ___ -- [च्चता पंचहि ठाणे हि त्या पुरिसेण सद्धि
संवसमावि गभं णो धारेज्जा । ३- ठाणांग, .. १०६ ४- अष्टांग दव, १।८-११, २२