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________________ गर्भ शब्द का जी- गर्म शब्द ओक अर्थों में प्रयुक्त होता है-- भ्रूण, शरीर का जन्म, शुक्र और शोणित का अनुबंध, मांसपिंड, शिशु, कुति, नाटक की संधि, फल, आहार, घर के अन्दर का भाग, कटहल का कांटेदार छिलका, कमल का कोश इत्यादि । टीकाकार अभ्यदेव तुरि कहते हैं-- सजी व पुद्गल पिण्ड का नाम ग है । वैदिक मान्यता के अनुसार जीव के संचित कर्म के फलदाता ईश्वर के आदेशानुसार प्रकृति द्वारा माता के जटर गह्वर में पुरुष के शुक्र का स्थापन गर्भं है । गर्भाधान- 43 वैदिक धर्म के अनुसार धार्मिक क्रिया के साथ पुरुष स्त्री की योनि में वीर्य स्थापित करता है, वह गर्भाधान कहा जाता है । इसी प्रकार जब रज पुरुष के संयोग से मिश्रित होकर स्त्री की कोशाकार योनि में प्रवेश करता है तब गर्भाधान होता है । दिगम्बर ग्रंथों में ५३ क्रियाओं में गर्भान्विय- गर्भाधान कौ पहला संस्कार कर्म ५ स्त्री और पुरुष का सहवास होने पर भी गर्भधारण नहीं हो सकता, इसका बहुत विस्तृत विवेचन स्थानांग सूत्र में मिलता है- १- पूर्ण युवती होने से, २- विगत यौवना होने से, ३- जन्म से ही बच्चा होने से, ४- रोग से स्पृष्ट होने से, १- मट्टी, ५. टोका । २- हिन्दू धर्मकोश, पृ० २२८ ४- तंदुलवैचारिक प्रकार्णांक, ११ ५- महापुराण, ३८।५१-६८ ३- वही, पृ०२८८
SR No.010245
Book TitleJain Karm Siddhanta aur Manovigyan ki Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnalal Jain
PublisherRatnalal Jain
Publication Year
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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