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________________ जन्म प्राण ग्रहण करने को जन्म कहते हैं । १ जन्म तीन प्रकार का होता है -- सम्पूच्छेन, गर्भज और उपपात । २ स्त्री पुरुष के संयोग से होने वाले जन्म को गर्म कहते हैं । ३ संयोग निरोप तथा बाहरी वातावरण से योग्य पुद्गलों को ग्रहण कर अनियत स्थान में उत्पन्न होने वाले सम्पृच्छन कहलाते हैं । ४ देवता और नारकी के जन्म को उपपात कहते हैं । वे अन्तर्मुहर्त में युवा हो जाते हैं । मनुस्मृति के अनुसार राक्षसों का जरायुज जन्म होता है । ६ चर प्राणियों के माठ भेद होते हैं -७ (१) गण्डन, (२) पोतज (३) जरायुज, (४) रसन, (५) संस्वेदज, (६) सम्मूर्च्छिम, (७) उद्भिज्ञ (८) उपपात । ८ यद्यपि गर्मव्युत्कान्ति के समय ही जन्म हो जाता है लेकिन वह प्रच्छन्न होता है । केवल जरायुज, अण्डज और पोतज जीव के ही गर्म होता है । मनुस्मृति में केवल जरायुज को गर्भज माना है । गर्भज जोव मनुष्य और संगी तिच पंचेन्द्रिय हा होते हैं । १० १- भगवती आराधना, २५। ८४ । १४ २- तत्वार्थ सूत्र, २।३१ सम्पदा जन्म, तवार्थसिद्धि, ས ३ - स्वार्थ सिद्धि, २।३१।१८७।४ । 42. ४- स्थानांग टीका | ५- सूत्रपाहु, जैन सिद्धान्त दो पिका, ३।१६ ६ - मनुस्मृति, १1४३ ७ - स्थानांग, ८।१ बट्ठ विधे जाणिसंग हे पण्णचे, तं जहा- अंडगा, पीतगा, जर उजा, रजा, संसेयगा, संमुच्छिमा उभिगा, उव्यातिया । जरायुजाण्डजपतानां गर्भः । ८- तत्वार्थ सूत्र, २।३३ ६- मनुस्मृति, १।४३ १०- ठाणं २२५३ ,
SR No.010245
Book TitleJain Karm Siddhanta aur Manovigyan ki Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnalal Jain
PublisherRatnalal Jain
Publication Year
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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