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________________ भगवान् गौतम ! यह सायुष्क संक्रमण करता है, निरायुष्क संक्रमण नहीं करता । गौतम -- पंते । वह आयुष्य का बंध कहीं करता है? भावान् -- वह वायुष्य का बंध पूर्वंभव में कर लेता है । जीव का गर्भवास - " गरुड पुराण सारोद्धार में तथा भागवत में जीव के गमावास का वर्णन इस प्रकार उपलब्ध है- माता द्वारा मुक्त बन्न यानादि से बढ़ा है रस, रक आदि धातु जिसका, ऐसा प्राणी असम्मत अर्थात् जिससे दुर्गंध जाती है जिसमें जीव का सम्भव है विष्ठा और मुत्र के गर्त में सोता है । सुकुमार होने के कारण गर्त में होने वाले भूखे कड़ों के काटे जाने पर प्रतिक्षण उस क्लेश से पीड़ित हो मूर्च्छित हो जाता है । माता से खाए हुए कहुवे, तीक्ष्ण, लवणीय ले और खट्टे बादि उल्बन पदार्थसे हुए जाने पर रंगों में वेदना होती है, तथा जरायु और आत के बंधन में पढ़ कर पीठ ग्रीवा के लचकने से कांख मँसिर करके पिंजरे के पक्षी के समान अंगों के चलाने में असमर्थ हो जाता है । वहां देव योग से सो जन्म की बात स्मरण कर दार्घ श्वास लेता है । अत: कुछ भी सुख नहीं । संतप्त और भयभीत जीव धातुरूप सांत बन्धनों में पड़कर तथा हाथ जोड़कर जिसने इस उदर में डाला है, उसकी दो न वचनों से स्तुति करता है । रे १- भगवती, ५. ५६ ६० : जावे णं ते! जे भविर नरेइरस उववज्जितर, से भते । किं साउर संकपाक ? निराराउर संकमक ? ! गोयमा ! साउए संकमर, नो निराउर संकमध ।।५६ ।। से णं ते! बाउ कहिं कडे? कहिं समाहणे ? गोमा । पुरिमेवे कडे, पुरिमे वें समाहरणे | ||६|| २- (क) श्रीमद्भागवत, ३।३१, ५६९१ (ख) गुरुडपुराण सारोदार, ६ ६ . १६
SR No.010245
Book TitleJain Karm Siddhanta aur Manovigyan ki Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnalal Jain
PublisherRatnalal Jain
Publication Year
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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