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नाम कर्म है । - - - जो छह प्रकार की पर्याप्तियों के भाव का हेतु है, वह वपर्याप्ति नाम कम है ।१
'बाहार, शरीर, इन्द्रिय वादि के व्यापारों में अर्थात् प्रवृत्तियों में परिणमन करने की जो शकियां हैं, उन शक्तियों के कारण जो पुद्गल स्कन्ध है, उन पुद्गल -स्कन्यों की निष्पति को पर्याप्ति कहते हैं । २ ‘आहार, शरीर, इन्द्रिय, श्वासोच्छवास, भाषा और मन: पर्याप्ति-- ऐसे छह पयाप्ति कहां है ।
गर्म-विज्ञान-- 'स्त्रों के उदर में शुभ और शोणित के परस्पर गरण अर्थात् मित्रण को गर्म कहते हैं अथवा माता के द्वारा उपमुक्त बाहार के गरण होने को गर्म कहते हैं । ४ 'माता का रुधिर और पिता का वीर्यप पुद्गल का शरीर प गहण कर जाव का उपज ना तो गर्भ जन्म है । ५
१ - सवधि-सिसि, ८।११।३६२।२: यदुदयाहारादिपयाप्तिनिवृति: तत्पर्याप्ति -
नाम। - - - षविध पर्याप्त्यमावहतरपर्याप्तिनाम । २- कातिझ्यानुधाा, १३४-३५: बाहार सरीरी दिणि सासुम्सास - मास
मणसाणं । परिण: वावारेसु य जाओ छच्चेव सची को ।। १३४।। तस्सेव
कारणाण पुग्गल संधान बाहु णिप्पती ।। १३५ ।। ३ - मूल-आराधना, १०४५ : आहारे य सरारे ---- जिणमादा । ४- सर्वार्थसिद्धि- २।३१।१७।४: स्त्रिया उदरे शशोणितयोगरण मिश्रण गर्भः ।
मात्रुपभुक्ताहार गरणादा गर्मः । ५ - गोम्मटसार जी कांड जीवतत्व पदी पिका, ८३।२०५।१:
बायपान जावेन शोणितप पिण्डस्य गरण शरीरतया उपादनं गर्भः ।