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आपस में सन्धि बनाती हैं, वहां पर वे गति के आधार पर संधियां तीन वर्ग की (१) अचल संधियां
(३) बबा धचल संधियां
थोड़ी बहुत गति करती हैं । इस प्रकार होती हैं :
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(२) अल्प चल संधियां
अबाध चल संधियों के प्रकार -- अबाधचन संधियों के उदाहरण शरीर में सबसे अधिक है । उनके कई प्रकार हैं तथा रचना में भी थोड़ा बहुत अन्तर होता है । ये संधियां निम्न प्रकार की होती है- (१) कंदुक अलूखल संधि
(२) कौर संधि
(३) घुराग संधि
(४) संसपा संधि
इस प्रकार हनन नामकर्म तथा शरीर वैज्ञानिकों के संधियों के वर्गीकरण है ।
पर्याप्त नामकर्म योनि स्थान में प्रवेश करते ही जीव वहां अपने शरीर के योग्य कुछ पुद्गल वर्गणाओं का ग्रहण या आहार करता है । तत्पश्चात् उनके द्वारा क्रमश: शरीर, श्वास, इन्द्रिय, भाषा व मन का निर्माण करता है । यद्यपि स्थूल दृष्टि से देखने पर इस कार्य में बहुत काल लगता है पर सूक्ष्म दृष्टि से देखने पर इस कार्य में एक अन्तर्मुहूर्त पूरी कर लेता है। उन्हें ही उसकी छह पर्याप्तियां कहते हैं। चारों तरफ से प्राप्ति को पर्याप्त कहते हैं । 'जिसके उदय से आहार बादि पर्याप्तियों को रचना होती है, वह पर्याप्त
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1. Human Anatomy And Physiology- Page 49. MIR Publications, Moscow, (1982). २- जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, माग ३, पृ० ३६
३- गोम्मटसार जी वकाण्ड, जीवतस्त्व प्रदीपिका, २२१६: मरिसमन्तात्, आाप्ति पर्याप्ति शक्ति निष्पतिरित्यर्थः ।
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