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________________ 35. कष मना राचसंहनन-- जिसके उदय से वन के हाड़ बोर वन की कीलें हों परन्तु वेष्टन वन के ना होते उसे वजना राचसंहनन कहते हैं । नाराचसंहनन-- जिस कर्म के उदय से वज़रहित वेषटन बोर कीलों से सहित हाड़ हों उसे नाराचसंहनन नामकर्म कहते हैं । अर्द्धनारासंहनन-- जिस कर्म के उदय से हाड़ों की संथियां वाधी की लित हों, उसे नारासंहना कर्म कहते हैं। को लकसंहनन -- जिस कर्म के उदय से हाड़ परस्पर की लित हों, उसे को लक संहनन कहते हैं । यसंपाप्तापाटिकासंहनन -- जिस कर्म के उदय से हाड़ नसों में बथे हों, कीलों से युक्त न हों उसे संप्राप्तसृपाटिकासंहनन कहते हैं । १ - रेसो चैव हड्डयो वजारिसह वज्जियो जस्स कम्मस्स उदरण होदितं कम्म (क) वजणारायणतरोर संघडण मिदि मण्णदे । 'जरस कम्पस्स उदरण वन्जविससण रहिदणारायण खो लियासो हड्डसंधिवो हवंति तं पारायण सरोर संघहणं णाम । जस्स कम्मस्स उदरण हड्डसंधीबो णारारण अद्धविदावो ह्मति तं बद्ध णारायण सरोरसंघणं णाम । जस्स कम्मस्स उदरण बज्ज हड्डाई खा लियाई वंति तं सी लिय सरीर सपण णाम । जस्स कम्मस्स उदरण णोण्णमसं पत्ताई सरि सिव हड्डाई व विरानद्धा हड्डाई इति तं वसं पत सेवट्ट सरीर संघडण पाम । (ख) ठाणे, ६.२०: वि संघयणे पण, तंबहा-- व रोसम-णाराय-संघयणे, उसभणाराय-संघयणे, णाराय-संघयणे, वणाराय - संघयणे, खो लिया संघयणे , विट्ट -संघयणे ।
SR No.010245
Book TitleJain Karm Siddhanta aur Manovigyan ki Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnalal Jain
PublisherRatnalal Jain
Publication Year
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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