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प्रकार के ही कर्म-स्कंध को काम शरीर कहते हैं अक्षा जो कार्मण शरीर नामकर्म के उदय से उत्पन्न होता है, उसे कार्मण शरीर कहते हैं ।
संस्थान नाम कर्म- संस्थान का अर्थ है -- शरीर के स्वयवों की रचना, आकृति । ये छह है-२ १- समचतुरख, २- न्यग्रोध-परिमंडल, ३ - सादि (स्वाति),
४ - कुब्ज, ५- वामन, ६. हुंडक स्वार्थ वार्तिक में इन- संस्था नों को व्याख्या इस प्रकार से की गई है
१- समचतुरस-- जिस शरीर-रचना में ऊ वं, अधः और मध्यमाग सम होता है, उसे समचतुरस संस्थान कहा जाता है । एक कुशल शिल्पो द्वारा निर्मित चक की सभी रेखार समान होती है । इसी प्रकार इस संस्थान में सभी भाग समान होते हैं । २- न्योगोध-परिमंडल-- जिस शरार-रचना में नामि के ऊपर का भाग बड़ा (विस्तृत) तथा नाचे फT माग छोटा होता है, उसे न्योगोध-परिमंडल कहा जाता है । इसका यह नाम इसी लिए दिया गया है कि इस संस्थान की तुलना न्योगोध (वट) वृक्ष के साथ होती है ।
३ - स्वाति-- इसमें नामि के ऊपर का भाग छोटा और नीचे का बड़ा होता है । इसका नाका र वत्मीक की तरह होता है ।
४ - कुब्ज -- जिस सरोर-रचना में पीठ पर पुद्गलों का अधिक संचय हो, उसे कुन संस्थान कहते हैं।
५ - वामन-- जिसमें सभी आ-उपांग छोटे हों, उसे वामन संस्थान कहते हैं।
१- (4) तत्वार्थ-वायिक, पृ० ५७६, ५७७
(ब) स्थानांगवृति, पत्र ३३६