SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 'तीन शरीर और छह पर्याप्तियों के योग्य पुद्गलों को ग्रहण करने को बाहार कहते हैं । .१ तेजल शरोरस्थूल शरीर में दाप्ति विशेष का कारण भूत एक अत्यन्त सूक्ष्म शरीर प्रत्येक जोव को होता है, उसे तेजस शरीर कहते हैं । तप व ऋद्धि विशेष के कारण मी दायें या बायें कंधे से कोई विशेष प्रकार का प्रज्वलित पुतला - सरीखा उत्पन्न किया जाता है, उसे तेजस समुद्घात कहते हैं । २ 'जो दाप्ति का कारण है या तेज में उत्पन्न होता है, उसे तेजस शरीर कहते हैं । ३ कार्मण शरीर जीव के प्रदेशों के साथ बन्धे वष्ट कर्मों के सूक्ष्म पुद्गल -स्कन्ध के संग्रह का नाम कार्मण शरार है । ४ यद्यपि सर्व शरोर कर्म के निमित्त से होते हैं, तो मारूढ़ि से विशिष्ट शरीर की कार्मण शरीर कहा है । कर्मो का कार्य कार्मण शरार है। ५ 'सब कर्मों का प्ररोहण अर्थात् आधार, उत्पादक और सुख दुःख का बीज है, इसलिए कार्मण शरीर है । 'ज्ञानावरण आदि आठ | ६ १- सर्वाधि - सिद्धि, २।३० | २८६ । ६ त्र्याणां शरीराणां षण्णां पर्याप्तो नां योग्यपुद्गल ग्रहण माहारः । २- जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, माग २, पृ० ३६४ । ३ - सवधि - सिद्धि, २। ३६ । १६१।८: -यतेजोनिभितं तेजसि वा भवं सवजतम् । ४- जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, मागर, पृ० ७५ । ५- सर्वार्थसिद्धि, २१३६ । १६१/६ : सर्वेषां कर्मनिमितत्वेपि ढिवशा विशिष्ट विषये वृत्तिरवसेया, कर्मणां कार्य कार्मणम् । ५ षट्संडागम, १४।५, ६० २४१।३२८: सव्वकम्पार्ण पहणुप्पादयं सुहदुक्खाणं बीजमिदि कम्यं । २४१ |
SR No.010245
Book TitleJain Karm Siddhanta aur Manovigyan ki Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnalal Jain
PublisherRatnalal Jain
Publication Year
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy