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जैसा जीन, वैसा आरमी28
जैमा 'जीन' होता है, गुणसूत्र होता है, आदमी वैसा हो बन जाता है, उसका स्वभाव और व्यवहार वैसा ही हो जाता है । यह जीन ही सभी संस्कार-सूत्रों तथा सारे भेदों-विभेदों का मूल कारण है । जीन-कर्म पर लिखे आदेश
जीन--विज्ञान की भापा में कहा जाता है कि एक-एक जीन पर साठ-साठ हजार आदेश लिखे हुए होते हैं।
कर्म-स्कन्ध (कर्म स्कन्ध)-कर्म-शास्त्र की भाषा में कहा जा सकता है कि एक-एक कर्म-कन्ध में अनन्त आदेश लिखे हुए होते हैं 120 जोन-स्थल-शरीर. कर्म-सूक्ष्म शरीर
अभी तक विज्ञान केवल 'जोन' तक ही पहुंच पाया है । जीन इस स्थूल शरीर का ही घटक है, किन्तु कर्म मूक्ष्म शरीर का घटक है। इस स्यूल शरीर के भीतर तैजस शरीर है, विद्युत शरीर है, वह मुक्ष्म है । इससे सूक्ष्म है कर्म-गरीर। यह सूक्ष्मतम है । इसके एक-एक स्कन्द पर अनन्त-अनन्त लिपियाँ लिम्बी हुई हैं। हमारे पुरुषार्थ का, अच्छाइयों और बुराइयों का न्यूनताओं और विशेषताओं का सारा लेखा-जोखा और सारी प्रतिक्रियाएँ कर्म-शरीर में अंकित हैं । वहाँ से जैसे स्पन्दन आते हैं, आदमी वैमा ही व्यवहार करने लग जाता है। कर्म सिद्धान्त और मनोविज्ञान का सिदान्त
कर्म का सिद्धान्त अति सूक्ष्म है। सूक्ष्म बुद्धि से परे का सिद्धान्त है। आज के वंश परंपरा के सिद्धान्त ने कर्म सिद्धान्त को समझने में सुविधा प्रदान की है। जीन-आनुवंशिक गुणों के संवाहक
जीन व्यक्ति के आनुवंशिक गुणों के संवाहक है ।10 व्यक्ति-व्यक्ति में जो भेद दिखाई देता है, वह जीन के द्वारा किया हुआ भेद है।
प्रत्येक विशिष्ट गुण के लिए विशिष्ट प्रकार का जीन होता है । ये आनुवंशिकता के नियम कर्मवाद के संवादी नियम है ।" स्थल शरीर से सूक्ष्म की यात्रा
स्थूल शरीर से सूक्ष्म शरीर की यात्रा अपन आप में बड़ी महत्वपूर्ण है। यह शरीर म्थल है, यह सूक्ष्म कोशिकाओं (Biological cells) से, निर्मित है । लगभग साठ-सत्तर खरब कोशिकाएँ हैं। मूई की नोक में ? अनन्त जीव ।
। . इन कोशिकाओं को जैन दर्शन के प्रतिपादन के सन्दर्भ में समझें कि सूई की नोक टिके-उतने-से स्थान में निगोद के अनन्त जीव समा सकते हैं । निगोद बनस्पति का एक विभाग है--यह सूक्ष्म रहस्यपूर्ण बात है । पर आज का विज्ञान भी अनेक सूक्ष्मताओं का प्रतिपादन करता है।
वर्ष-2, अंक-2, मार्च-90