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________________ कोई जीन पैर की लम्बाई का हुआ तो कोई नाक या । गोई छोटी आंत्र का हुआ तो कोई निचिड़ापन का इत्यादि । ___ जीव विज्ञान के अनुसार प्रत्येक भ्रण-कोष में चौबीस पिता के तथा चौबीस माता के बंग-गुत्रों का समागम होता है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इनके संयोग से 16,777,216 प्रकार की विभिन्न सम्भावनाएँ अपेक्षित हो सकती हैं। विभिन्न मानसिक-शारीरिक स्थिति प्रकृति की लीला कितनी विचित्र है। वैज्ञानिकों का कथन है कि वंश-सूत्रों का मिश्रण जय माता-पिता में भी सदैव ममान नहीं होता क्योंकि उनकी मानसिक तथा शारीरिक स्थिति मदैव कमी नहीं रहती । मनोविज्ञान में भिन्नता? कर्मशास्त्र में तो वैयक्तिक भिन्नता का चित्रण मिलता ही है। मनोविज्ञान ने भी प्रमका विशद रूप से चित्रण किया है। इसके अनसार वैयक्तिक भिन्नता का प्रश्न मल प्रेरणाओं के सम्बन्ध में उठता है । मूल प्रेरणाएं (Primary motives)-'मल प्रेरणा सव में होती हैं, किन्तु उनको मात्रा मब में एक ममान नहीं होती । किसी में कोई एक प्रधान होती है तो किसी में कोई दूसरी प्रधान होती है।' अधिगम क्षमता ( Learning Capacty) अधिगम क्षमता भी सब में होती है, किसी में अधिक होती है, किमी में कम। वैयक्तिक भिन्नता का सिद्धान्त तो मनोविज्ञान के प्रत्येक सिद्धान्त के साथ जुड़ा हुआ है ।। वंश-परम्परा और वातावरण (Heredity and Environment)-मनोविज्ञान में . वैयक्तिक भिन्नता का अध्ययन वंश परम्परा और वातावरण के आधार पर किया जाता है। जीवन का आरम्भ माता के डिम्ब और पिता के शुक्राणु से होता है। कोमोसोम (Chromosonne)-जोनों का समुच्चय ____ व्यक्ति के आनुवंणिक गुणों का निश्चय क्रोमोसोम द्वारा होता है । क्रोमोसोम अनेक जानी (जीन्म) का समन्चय होता है । ये जीन ही माता-पिता के आनुवंशिक गुणों के वाहक होते है । एक क्रोमोसोम में लगभग हजार जीन माने जाते हैं । शारीरिक-मानसिक क्षमताएं (Potentialities)" ___ इन जीन्स में ही शारीरिक और मानसिक विकास की क्षमताएँ निहित होती हैं । व्यक्ति में कोई ऐसी विलक्षणता प्रकट नहीं होती जिसकी क्षमता उनके जीन में निहित न हो। मनोविज्ञान ने शारीरिक और मानसिक विलक्षणताओं की व्याख्या वंशपरम्परा और बातावरण के आधार पर की है। वर्ष-2, अंक-2, मार्च-90
SR No.010245
Book TitleJain Karm Siddhanta aur Manovigyan ki Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnalal Jain
PublisherRatnalal Jain
Publication Year
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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