SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अन्दर होना, बुद्धिमान या बुद्धिहीन होना, स्वस्थ या रोगी होना - यह सब इन ग्रन्थियों के त्रा पर निर्भर है । ग्रन्थियों के स्राव - इन सब को नियन्त्रित करते हैं । इसी तथ्य को हम कर्म शास्त्रीय भाषा में समझें । कर्मशास्त्रीय भाषा नाम कर्म-विचित्रता - आठ कर्मों में एक कर्म है--नाम कर्म । उसके अनेक विभाग हैं । संस्थान नाम कर्म के कारण मनुष्य लम्बा या बोना होता है । इस प्रकार सुन्दर कुरूप, सुस्वर वाला या दुःस्वर वाला आदि सब नाम कर्म की विभिन्न प्रकृतियों के कारण होता है । नाम कर्म का सूक्ष्म अध्ययन करने पर स्पष्ट हो जाता है कि हमारे शरीर का सारा निर्माण नाम कर्म के आधार पर होता है ।" उपर्युक्त कर्म शास्त्रीय विश्लेषण और शरीर शास्त्रीय विश्लेषण को देखें । दोनों में भाषा का अन्तर है, तथ्य का नहीं। शरीर शास्त्री 'हार्मोन्स', 'सिक्रीशन ऑफ ग्लैडस'- ग्रंथियों का स्राव कहते हैं । कर्म-शास्त्री 'कर्मों' का 'रसविपाक' - 'अनुभाग बन्ध' कहते हैं । मनोविज्ञान की भाषा में मित्रता का नियम ( Law of Variation ) साधारणत: यह समझ लिया जाता है कि समान 'समान' ही उत्पन्न करता है । इसका अर्थ यह हुआ कि बुद्धिमान या स्वस्थ माता-पिता अपने ही समान सन्तान उत्पन्न करते हैं और निर्बल निर्बल सन्तान उत्पन्न करते हैं । पर कहीं-कहीं हमें इस नियम में परिवर्तन दिखाई देता है । बुद्धिमान माता-पिता के मुखं सन्तान क्यों उत्पन्न होती है ? बहुत साधारण परिवार में कभी-कभी बड़े प्रतिभाशाली व्यक्ति कैसे उत्पन्न हो जाते हैं ? हम शंका का समाधान 'भिन्नता के नियम' से होता है । 27 वंशानुक्रमीय गुणों ( Heredity traits) के वाहक बीज कोष ( Germ Plasm ) हुआ करते हैं। ये बीज-कोप अनेक रेशे से बने हुए होते हैं। 28 इन रेशों को अंग्रेजी में क्रोमोजोम्म (Chromosomes ) कहते हैं । इसे हम वंश सूत्र की संज्ञा देंगे ।' जोन्स - विभिन्न गुण-दोषों के वाहक एक बीज कोप में अनेक वंश-सूत्र पाये जाते हैं। आश्चर्य है कि इन वंशसूत्रों के और भी अनेक सूक्ष्म भाग होते हैं, जिन्हें अंग्रेजी में 'जीन्स' कहते हैं । ये 'जीन्स' अनेक संख्या में मिलकर वंश-सूत्र मनाते हैं । वास्तव में ये जीन्स ही विभिन्न गुण-दोषों के वाहक होते हैं ।" वचन, इन्दीर
SR No.010245
Book TitleJain Karm Siddhanta aur Manovigyan ki Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnalal Jain
PublisherRatnalal Jain
Publication Year
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy