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३. अधिशास्ता मन (Super Ego) .
अदस मन (Id)-इसमें आकांक्षाएं पैदा होती हैं, जितनी प्रवृत्यात्मक आकांक्षाएं और इच्छाएं हैं, वे सभी इसी मन में पैदा होती हैं।
अहं मन (Ego)-समाज-व्यवस्था से जो नियन्त्रण प्राप्त होता है, उससे आकांक्षाएं यहां नियन्त्रित हो जाती हैं और वे कुछ परिमाजित हो जाती हैं। उन पर . अंकुश जैसा लग जाता है । अहं मन इच्छाओं को क्रियान्वित नहीं करता।
- ३. अधिशास्ता मन (Super Ego)-यह अहं पर भी अंकुश रखता है, और उसे नियन्त्रित करता है। अविरति अर्थात् छिपी हुई चाह । सुख-सुविधा को पाने की और कप्ट को मिटाने की चाह । यह जो विभिन्न प्रकार की आन्तरिक चाह है, आकांक्षा है- इसे कर्मशास्त्र की भाषा में अविरति आस्रव कहा है। इसे मनोविज्ञान की भाषा में अदस् मन (Id) कहा गया है। कषाय--राग और द्वेष
उमास्वाति कहते हैं-'कपाय भाव के कारण जीव कर्म के योग्य पद्गलों का ग्रहण करता है, वह बन्ध कहलाता है।"
आत्मा में राग या पभावों का उद्दीप्त होना ही कषाय है। राग और द्वेषदोनों कर्म के बीज हैं।" जैसे दीपक अपनी ऊष्मा से बत्ती के द्वारा तेल को आकर्षित कर उसे अपने शरीर (लो) के रूप में बदल लेता है, वैसे ही यह आत्मा रूपी दीपक अपनी राग भाव रूपी ऊष्मा के कारण क्रियाओं रूपी बत्ती के द्वारा कर्म-परमाणओं रूपी तेल को आकर्षित कर उसे अपने कर्म शरीर रूपी लो में बदल देता है।
राग-पोश-सुख भोगने की इच्छा राग है"- जीव को जब कभी जिस किसी अनुकल पदार्थ में सुख की प्रतीति हुई है या होती है, उसमें और उसके निमित्तों में उसकी आसक्ति-प्रीति हो जाती है, उसी को राग कहते हैं।
वाचकवर्य श्री उमास्वाति कहते हैं- इच्छा, मूळ, काम, स्नेह, गद्धता, ममता, अभिनन्दन, प्रसन्नता और अभिलाषा आदि अनेक राग भाव के पर्यायवाची शब्द हैं।"
देष-क्लेश-पातंजल योग-दर्शन में लिखा है कि दुःख के अनुभव के पीछे जो घृणा की वासना चित्त में रहती है उसे देष कहते है ।" जिन बस्तुओं अथवा साधनों से दःख प्रतीत हो, उनसे जो घृणा या क्रोध हो, उनके जो संस्कार चित्त में पड़ेंउसे देषक्लेश कहते हैं।
प्रशमरति में लिखा है- ईर्ष्या, रोष, द्वेष, दोष, परिवाद, मत्सर, असूया, वैर, प्रचण्डन आदि शब्द द्वेष भाव के पर्यायवाची शब्द हैं।"
प्रमाद, अस्मिता और अभिनिवेश का समावेश भी राग-द्वेष में हो जाता है। संदर्भ : १. कर्मवाद:-प्रस्तुति-युवाचार्य महाप्रज्ञ
२. पं० सुखलालजी कृत कर्मविपाक, प्रस्तावना, पृ० २३. " बा१४.संक ३ (दिसम्बर, ८)