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“दो पारस्परिक विरोधी प्रवृत्तियों को साथ ही उत्तेजित कर देने से मूलप्रवृत्तियों में परिवर्तन लाया जा सकता है। काम प्रवृत्ति के उत्तेजित होने के समय यदि भय अथवा क्रोध उत्पन्न कर दिया जाए तो कामभावना ठंडी पड़ जाएगी।
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संग्रह - प्रवृत्ति त्याग भावना से शान्त की जा सकती है।
अतः पातंजल योग दर्शन की प्रतिपक्ष की भावना, जैनागम के क्रोधादि भावों को उपशम (क्षमा) आदि से शांत करना तथा मनोवैज्ञानिक का विलयन (विरोधन) के सिद्धांत में आश्चर्यकारी साम्य-समानता है।
अतः यह समन्वयात्मक ज्ञान आत्म-विकास के लिए परम हितकर है। जिसका अध्ययन अपेक्षित है ।
सन्दर्भ
१. कर्मवाद, युवाचार्य महाप्रज्ञ, पृष्ठ- २३५॥
२. कर्मवाद, कर्मशास्त्र मनोविज्ञान की भाषा में।
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३. उत्तराध्ययन, ३२.७१
रागो या दोसो निय कम्मवीथं, कम्मंच मोहप्पभवं वयंति।
कम्मं च जाई मरणस्स मूलं दुक्खं च जाई मरणं कयंति ।
४-५ पातंजल योग दर्शन ।।२.७.८ ।।
६. प्रवचन सार/त.प्र./८५-अभीष्ट विषयप्रसङ्गेन रागम् ||
७. धवला १२/४, २,८, ८/२८३/८ - भाया लोभविदे-त्रय -
हास्यरतयो रागः
८. प्रशमराति १८ इच्छा मूछ काम स्नेही गाधय ममत्वमाभिनन्दः । अभिलाषं इत्यनेकानि राग पर्यायवचनानि
९. ठाणांग २.४.९६ माया लोभ कषायश्वेत्येद् राग संज्ञि त्वं । क्रोधोमानश्च पुनद्वेषं समासनिर्दिष्टः
१०. समवाओं, ५२: जैन विश्व भारती, लाडनूं:
- माया, उवही नियडी वलए गहणे, णूमेकक्के कुरुए दंगे जिम्हे किब्बिसिए आणायरणया गृहगया वणया पलिकुंचण या सातिजोगे ।
११. समवाओं, ५२ ।
-लोपे इच्छा मुच्छा करवा गेही तिण्डा भिज्जा अभिज्जा, कामसा, मोगासा, जीवियासा, मरणासा नंदी रागे ।
१२. (क) प्रवचनसार/त-१/८५०
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