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५. गद्धि- आसक्ति । ६. तृष्णा- जोड़ने की इच्छा, वितरण की विरोधी वृत्ति ।
७. मिथ्या-विषयों का ध्यान । .
८. अभिध्या- निश्चय में डिग जाना या चंचलता ।
९. कामाशा- काम की इच्छा।
१०. भोगाशा- भोग्य पदार्थों की इच्छा ।
११. जीविताशा- जीवन की कामना ।
१२. मरणाश- मरने की कामना ।
१३. नंदी- प्राप्त संपत्ति में अनुराग ।
१४. राग- इष्ट वस्तु प्राप्ति की इच्छा। द्वेष का स्वरूप 'अनिष्ट विषयों में अप्रीति रखना ही मोह का एक भेद है, उसे देष कहते
'असंहाजनों में तथा असह्य पदार्थों के समूह में बैर के परिणाम रखना देष कहलाता है।". धवला में बताया गया है
कोष, मान, अरति, शोक, भय व जुगप्सा- ये छह कषाय देषरूप है।
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वाचकवर्य उमास्वाति ने देष के निम्नलिखित नाम बताए
"ईर्ष्या, रोष, दोष, द्वेष, परिवाद, मत्सर, असूया, वैर एवं प्रवंडन आदि देष भाव के पर्यायवाची है।" चार कषायों क्रोध, मान, माया और लोप में क्रोध और मान को रेप की संज्ञा दी गई है। .. क्रोध
समवायांग में क्रोध के निम्नलिखित नाम दिए गए -"
१. क्रोध- आवेग की उत्तेजनात्मक अवस्था ।
२. कोप-क्रोध से उत्पन्न स्वभाव की चंचलता।
३. रोष- क्रोध का परिमट रूप।
४. भक्षमा- अपराय समा न करना ।