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वर्ष-३,अंक-४,अक्टूबर-९१,५१-६०
अर्हत् वचन
कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दार
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कर्मवादकामनोवैज्ञानिकपहल
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. रत्नलाल जैन
कर्मवाद भारतीय दर्शन का एक प्रतिष्ठित सिद्धांत है। उस पर लगभग सभी पुनर्जन्मवादी दर्शनों ने विमर्श प्रस्तुत किया है।
पूरी तटस्थता के साथ कहा जा सकता है कि इस विषय का सर्वाधिक विकास जैन दर्शन में हुआ है। '. कर्मवाद मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित है। अतः कर्मशास्त्रा को कर्म मनोविज्ञान ही कहना चाहिए। कर्मवाद में
कर्मशास्त्र में शरीर-रचना से लेकर आत्मा के अस्तित्व तक, बन्धन से लेकर मुक्ति तक-सभी विषयों पर गहन चिंतन और दर्शन मिलता है। यद्यपि कर्मशास्त्र के बड़े-बड़े ग्रन्थ उपलब्ध हैं, फिर भी हजारों वर्ष पुरानी पारिभाषिक शब्दावली को समझना स्वयं एक समस्या है। मनोविज्ञान में
आज के मनोवैज्ञानिक मन की हर समस्या पर अध्ययन और विचार कर रहे हैं, जिन समस्याओं पर कौशास्त्रियों ने अध्ययन और विचार किया, उन्हीं समस्याओं पर मनोवैज्ञानिक अध्ययन और विचार कर रहे
समन्वय की भाषापदि मनोविज्ञान के सन्दर्भ में कर्मशास्त्र को पढ़ा जाए तो उसकी अनेक गुत्थियां सुलझ सकती हैं, अस्पष्टताएं स्पष्ट हो सकती हैं। यदि कर्मशास्त्र के संदर्भ में मनोविज्ञान को पढ़ा जाए तो उसकी अपूर्णता को समझा जा सकता है और अब तक अनुत्तरित प्रश्नों के उत्तर खोजे जा सकते हैं।'
*गली आर्य समाज , हांसी (हरियाणा) १२५ ०३३