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________________ मनोविज्ञान के सन्दर्भ में भाग्य को बदलने का सिद्धांत-संक्रमकरण . रत्नलाल जैन -- विश्व का कोई भी तत्व ऐसा नहीं जो पतिवर्तनशील न हो। जो नित्य है बह अनित्य भी है, और जो अनित्य है वह नित्य भी है । सब परिवर्तनशील है। भगवान् महावीर ने कर्म सिद्धांत के विषय में कुछ नई धारणाएं दी जो अन्यत्र दुर्लभ है । उन्होंने कहा'-"उद्वर्तन (उत्कर्ष), अपवर्तन. (अपकर्ष), उदीरणा और संक्रमण से 'कर्म को बदला जा सकता है"-दूसरे शब्दों में भाग्य को बदला जा सकता ____माज का विज्ञान जहाँ अब इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि पारे से सोना बनाया जा सकता है। प्राचीन रसायन शास्त्रियों ने पारे से सोना बनाने की अनेकों विधियो बताई हैं। जैन ग्रन्थों में भी उनका यत्र-तत्र वर्णन प्राप्त होता है। पारे से सोना कसे? वैज्ञानिकों ने यह निष्कर्ष निकाला कि पारे के अणु का भार २०० होता है। उसे प्रोटोन के द्वारा तोडा जाता है। प्रोटोन का भार १ (एक) होता है। प्रोटोन से विस्फोटित करने पर वह प्रोटीन पारे में घुल-मिल गया और पारेका मार २०१ हो गया। २०१ होते ही अल्फा का कण निकल जाता है, उसका भार चार है, जो कम हो गया। शेष १९७ भार का मण रह गया। सोने के अणु का भार १६७और पारे के अणु का मार भी १९७, सो पारा सोना हो गया । वैज्ञानिकों ने इसे सिद्ध कर दिखा दिया है। इस पद्धति से बनाया गया सोना महंगा पड़ता है, किन्तु यह बात प्रामाणिक हो गई है कि पारे से सोना बनता है। चांदी से सोना नागार्जुन ने अपने 'रस-'रत्नाकर' में लिखा है कि गन्धकशुद्धि के प्रयोग द्वारा चांदी को सोने में परिवर्तित किया जा सकता है इसमें आश्वयं ही क्या, यदि पीला गन्धक पलास-निर्याम-रस से शोधित होने पर तीन बार गोबर के कण्डों पर गरम करने पर चांदी को सोने में परिवर्तित कर तांबे से सोना रस-रत्नाकर' में ही आगे लिखा है-'इसमें आश्चर्य ही बया पदि तांबेको रसक रस द्वारा तीन बार तपाएं तो वह सोने में परिणत हो जाए।' अतः भनेक खण्ड १८. अंक ३, (अक्टू-दिस०, ९२)
SR No.010245
Book TitleJain Karm Siddhanta aur Manovigyan ki Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnalal Jain
PublisherRatnalal Jain
Publication Year
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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