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पुष्ट होते हैं। पांचवें में पांच अं (दो हाथ, दो पैर तथा सिर) उत्पन्न होते है। छठे मास में पिच और रक पुष्ट होता है । आधुनिक विज्ञान की खोज के अनुसार बेटे मास में बच्चा सवांगं पूर्ण हो जाता है । यदि इसी मास में जन्म हो जायें, उचित पोषण और वातावरण मिले तो वह जीवित रह सकता है । १
सातवें मास में ६०० नरों, ५०० पेशियां तथा धर्मानियां उत्पन्न होती हैं तथा सिर के बाल, दाढ़ी, मुंग आदि रोमकूपों को छोड़कर ६६००००० रोमकूप उत्पन्न हो जाते हैं । यदि सिर के बाल व दाढ़ी मुरों को गिनें तो साढ़े तीन करोड़ रोमकूप उत्पन्न होते हैं | आठवें मास में गर्भ प्राय: पूर्ण हो जाता है ।
भगवती आराधना के अनुसार प्रथम मास में गर्भ कलल, द्वितीय में अर्बुद, तासरे में सघन तथा चाध में मांसपेशी का रूप धारण कर लेता है। पांचवे मास में पांच मुख्य जपयन तथा टे में उपांग प्रकट होते हैं । सातवें मास में अवयवों पर धर्म रोम तथा आठवें में हिलना खुलना प्रारम्भ हो जाता है तथा दसवें मास में बच्चा बाहर आ जाता है।
आयुर्वेदिक शास्त्रों में एस विषय पर विस्तार से चर्चा की गई है । उनके अनुसार प्रथम मास में कलल तथा दूसरे मास में मांसपिंड के तीन आकार बनते है-- १- पिण्ड स्पेशा, ३- હનુમ पिंडकार से पुरुष, पेशी से स्त्री तथा अर्बुद से नपुंसक गर्म बनता है । ४ तासरे मास में पांच अवयव व्यक्त होते हैं तथा उपांग जव्यक्त रहते हैं । एस मास में भ्रूण को सुख दुःख का अनुभव होने लगता है । च मास में अंग प्रत्यंगों का विभाग व्यक्त होने लगता है। पंचम मास में चेतना को अभिव्यक्ति होती है। छठे मास में स्नायु, शिरा, रोम, नख, त्वचा आदि बनते है | सातवें मास में सर्वागि पूर्ण हो जाता है। आठवें और नवें मास में शरीर की पुष्टि होती है ।
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- Mind Alive, P. 38-39.
२- तंदुलवैचारिक प्रका, सू० २ ३- भगवती आराधना, १००७-१०१०
४- अष्टांग, १।४६-५३, सुश्रुत ३।१५ ५- अष्टांग, १।५४-६८