________________
गर्भस्थ शिशु के विकास का कम--
गर्मगत जीव के विकास का कम अद्भुत है । आज तो विज्ञान ने टू-डी - अल्ट्रासाउंड यंत्र का विकास कर लिया है जिसके सहारे वी रियोस्की न पर गर्भस्थ बच्चे के विकास को पूरी प्रक्यिा देखी जा सकती है । इस यंत्र का आधार वति सुक्ष्म ध्वनि-तरंगें हैं जिनके आधार पर शि के प्रत्येक स्पंदन, स्थिति आदि फिल्म की भांति प्रत्यक्ष देखी जा सकती है । इस सारी प्रकिया को अब वीडियो कैसेट में स्थायी रूप से रिकार्ड किया जा सकता है । इसके आधार पर यदि १२ या १३ सप्ताह के गर्भ में कोई विकृति दिखाई देती है, तो उस स्थिति में निवारक कदम उठाए जा सकते हैं । लेकिन प्राचीन ऋषि-महर्षियों ने बिना यंत्रों की सहायता के आने तीन्द्रिय ज्ञान से जो गर्भस्थ शिशु के विकास का वर्णन किया, वह आने काप में विलक्षण है ।
पकी ण क के अनुसार विकास का कम इस प्रकार है-- गर्भस्थ जीव प्रथम सप्ताह में कलल रूप में रहता है । दूसरे सप्ताह में अर्बुद रूप में, तोसरे में पेशी तथा चौथे सप्ताह में चतुष्कोण मांसपिंड के रूप में प्रक्ट हो जाता है।'
उसके पश्चात् दुसरे मास में वह मांसपिण्ड बढ़कर समचतुरल हो जाता है। वैज्ञानिक परीक्षणों के अनुसार तो दो मास के बच्चे का हृदय घलने लगता है । इस मास में मस्तिष्क तथा सुषुना तेजी से बढ़ती है, तथा उसके अवयवों की रचना आरम्म हो जाती है । इसी मास में लिंग के चिह्न प्रक्ट होते हैं ।२ तीसरे मास में माता को दोहद उत्पन्न होता है । शरीरशास्त्रियों के अनुसार तीसरे मास में मांसपेशियां तथा नाड़ी संस्थान का तेजी से विकास होता है । प्राय: समी अयवों की रचना पूर्ण हो जाती है । चौथे मास में माता के आ
-
-
-
-
.
१- तदुलवचारिक प्रकोणक- गा० १७ सु० २ p- Mind Alive, p. 38.