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________________ शरीर-इन्द्रिय रचना एवं मानसशान-- प्रस्तुत आलाप में शरार-रचना और इन्द्रिय तथा मानस-ज्ञान के विकास का सम्वन्ध प्रदर्शित ह-१ जीव बाल्य (स्थूल) शरीर इन्द्रिय-ज्ञान १- केन्द्रियऔदारिक स्पर्शन ज्ञान (पृथ्वी, अ तेजस् वायु, वनस्पति) २- दीन्द्रिय औदारिक (अस्थि, मांस रसन, स्पर्शन ज्ञान । शोणित युक्त) ३- त्रीन्द्रिय औदारिक (वस्थिमांस, पाण, रसन, स्पर्शन ज्ञान शोणित युक्त), ४- चतुरिन्द्रिय औदारिक (अस्थिमांस, शोणित युक्त) चतु, प्राण, रसन, स्पर्शन ज्ञान ५- पंचन्द्रिय (तियंच) श्रोत्र, चतु, प्राण, रसन, स्पर्शनज्ञान बोदारिक (अस्थिमांस, शोणित, स्नायु, शिरायुक्त) औदारिक (अस्थि मांस . शोणित स्नायु शिरायुक्त) ६- पचेन्द्रिय (मनुष्य) श्रोत्र, चा, प्राण, रसन, स्पर्शन ज्ञान । ... जीवों के शारीरिक इन्द्रियों की वृद्धि के साथ-साथ उनका मानस-ज्ञान भी बढ़ता जाता है। १- ठाण टिप्पण, पृ०१२५ ।
SR No.010245
Book TitleJain Karm Siddhanta aur Manovigyan ki Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnalal Jain
PublisherRatnalal Jain
Publication Year
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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