SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 117
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वह मी कायमवस्थ कहलाता है । इसी प्रसंग में उदक-पानी के गर्भ की स्थिति मो जघन्य एक समय बोर उत्कृष्ट ६ मास बतायी गयी है । २ शरीर विज्ञान के अनुसार गर्म की सामान्य स्थिति २८० दिन की मानी जाती है । योनिभूत वो ये की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहर्त तथा उत्कृष्ट बारह मुहूर्त होती है। विज्ञान के परीक्षणों के अनुसार वीय कीटाणु योनि में २४ घंटे तक जो वित रह सकते हैं तथा गमाशय ग्रीवा पर ७२ पटे तक चलते हुए देखे गये हैं। दिगम्बर आचार्य के अनुसार संभोग के सात दिन बाद भी गर्भ की स्थिति रह सकती है तथा स्वयं व्यक्ति मर कर भी सनी पत्नी के गर्भ में उत्पन्न हो सकता है । यह बात तक संगत प्रतीत नहीं होती ।६ गर्मस्थ जीव का आसन-- गर्भस्थ जीव गभाशय में उत्तानपाद, पार्श्वशायी या वामृकुटज बासन की स्वस्था में सस्थित रहता है । वह माता के सोने पर सोता है, तथा जागने पर जागता है । प्रसवण के समय कुछ जीव सिर की ओर से तथा कुछ पर के बल पर जन्म लेते हैं तथा जो तिर्यक् स्थिति में बाहर निकलते हैं, वे प्राय: मर जाते हैं। जीव जब स्त्री की योनि से बाहर निकलता है तब रुदन करता है तथा माता को अत्यन्त वेदना होतो है । . गर्भस्थ शिशु का वाहार और नो हार-- आहार और जीवन का पनिष्ठ सम्बन्ध है। बिना बाहार के प्राणी विकसित नहीं होता, जीव जब गर्भ में व्युत्तांत १- मटी, पृ० १३३ २- पावती, श८१ ३- Mind Alive, P. 40. ४- भगवती, श५ ५- गर्भविज्ञान, पृ० २५ ६- यशोधराचरित्र, पृ० १०६ ७- मावती, १।३५७, तंदुल गा० १६ ८- मगवती, १।३५७ ६ - तंदुलव चारिक प्रकीर्णक,गा० २६
SR No.010245
Book TitleJain Karm Siddhanta aur Manovigyan ki Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnalal Jain
PublisherRatnalal Jain
Publication Year
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy