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________________ इसके अतिरिक्त बिना स्त्री की योनि के हो वैज्ञानिकों ने प्लास्टिक को थली में बच्चे को जन्म दिया ।यह प्रयोग १६ फरवरी सन १६४५ को कनाडा के । फांसीसी डाक्टर प्रोफेसर गेग ना न ने मनी प्रयोगशाला में किया । उन्होने स्त्री के रज तथा पुरुष वीर्य के जो वित परमाणुओं को एकत्रित किया । स्त्रो के खून में बच्चा बनने के योग्य कीटाणु मास में एक बार ही बनते हैं । उन्होंने इसका पता लगाने के लिये किलो का यंत्र बनाकर अनी स्त्री की कमर में बांध दिया । खुन में कीटाणु पैदा होते ही खून का रंग बदल गया । डा० मेगना न ने फारन यंत्र के माध्यम से उसे निकाल कर फिर अने वो य-कीटाणु के साथ उसे प्लास्टिक की थैली में रख दिया । रखते ही वे दोनों कीटाणु एकाकार होकर घली से चिपक गर । थली का आकार बतख के अंडे जसा था तथा लचकी ली होने से उसमें वृद्धि हो सकती था । उसके दोनों ओर दो छिद्र थे जिनमें दो नलियां लगाकर उनका सम्बन्ध दांयी बोर पाया तरफ विधमान थर्मोस जसो बोतलों से तथा बिजली के यंत्र से जोड़ दिया । उस थली को एक कांच की पेटी में सुरक्षित रख दिया । थर्मोस की शो शो को भांति पेटी में भी दुहरी दीवारें थी । उन दीवारों के बीच एक खास प्रकार का तेल भरकर उस पेटी के साथ बिजली का हीटर लगा दिया जिससे तल हर समय गर्म रह सके । बच्चे की खुराक के लिए मनो स्त्री का एक पौंड खून लेकर पाक्वता एक बोतल में मर दिया तथा दूसरी में चुने आदि आवश्य पदार्थ रख दिये, जो खुन के साध मिश्रित होकर बच्चे को खुराक बन सके । हर तीन चार सप्ताह के बाद वैज्ञानिक एक पौंड खून उस बोतल में भर देता । यह कम नौ मास तक चालू रखा । बच्चे की वृद्धि होने पर सुन की मात्रा भी बढ़ाई गई नौ मास पूर्ण होने पर बच्चे को थली से बाहर निकाला । उसका नाला काटा तथा स्त्री के स्तन में मी इंजेक्शन दारा दुध की उत्पति कर दी । वह बच्चा बड़ा होने पर जिन्दा रहा । यह वैज्ञानिक जगत की एक आश्चर्यजनक घटना थी लेकिन आज तो इस दिशा में विज्ञान बहुत आगे बढ़ गया है ।
SR No.010245
Book TitleJain Karm Siddhanta aur Manovigyan ki Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnalal Jain
PublisherRatnalal Jain
Publication Year
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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