SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गांधान की कृत्रिम प्रकिया-- गमाधान की पद्धति दो प्रकार का है- स्वाभाविक और कृत्रिम । कृत्रिम पद्धति से बिना स्त्री-पुरुष के संयोग के भी गभाधान हो सकता है । स्थानांग में इसके पाच कारणों का उल्लेख मिलता है ।१ १- पुरुष का वी ये जहां पड़ा हो वहां अनावृत गुह्य प्रदेश से बैठी हुई स्त्री की योनि में यदि शुक पुद्गलों का प्रवेश हो जाय तो गर्भधारण हो सकता है। २- पुरुष के वस्त्र जिसमें उसका वीय संसृष्ट हो, उस वस्त्र को पहनने से * पुदगल यदि योनि में प्रविष्ट हो जाये तो गर्भाधान हो सकता है । ३- सन्तानोत्पति की इच्छा से स्वयं सने हाथों से स्त्री शक पुद्गलों को योनि देश में प्रविष्ट कराये तो गर्भ धारण हो सकता है । ४. इसरों के द्वारा शुक पुगलों को योनि प्रदेश में प्रविष्ट कराने पर । विदेशों में आजकल यह प्रयोग बहुत चल रहा है । वैज्ञानिक लोगों ने तो यहां तक प्रयोग कर लिया है कि दम्पत्ति के शुभ और वो ये को किती तीसरी स्त्री को योनि में प्रक्षेप कर दिया जाता है, जिससे ६ मास का कष्ट न उठाना पड़े। पशु-पतियों पर मी कृत्रिम गर्भाधान के अनेक प्रयोग हुए हैं। ५- नदी, तालाब आदि जहां स्त्री और पुरुष स्नान कर रहे हों, वहाँ बनावृत स्नान करते हुए स्त्री की योनि में शुक्र पुद्गलों का प्रवेश होने से गर्म धारण हो सकता है। . . . .. १- ठाण, ५।१०३
SR No.010245
Book TitleJain Karm Siddhanta aur Manovigyan ki Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnalal Jain
PublisherRatnalal Jain
Publication Year
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy